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( 12 ) हिंदी शब्दार्थ :
हरि ने दुःख का हरण कर लिया है और सहजानंद में शीतल सुख भोग रहा है। अमृत-बेल के वैरी की बेटी केशर चंदन घोलकर पुष्पों से पूजा करती है । उसके पति का हार उसका वैरी है ॥१॥ उसके स्वामी की स्त्री का नाम एक वर्ण का लक्षण भर है। उस ध्र व न्याय को आगे कर उष्माल चंद्रक ने बांध दिया ।।२।। स्पर्श का वर्ण उसके नेत्रों के प्रमाण से, सिर पर सुन्दर मात्रा धारण की है। विषराज सूत्र जमे तो विग वर्णादि दूर हो जाय ।।३।। एक वीसवें स्पर्श को धारण करें तो उसका सामान्य अर्थ होता है। जिह्वा के स्वर को टालकर यदि हृदयस्थ करें तो उसकी गति शिवगामी होती ।।४।। यदि बीस स्पर्श से संयम माने तो आदि कारण को दिल में धारण करें। इस नाम से नित्य जिनेश्वर का ध्यान करूं तो जिनेश्ववर को धारण करलं ॥५॥ त्र्यंषक, हत्थ या वषजन कहे तो यह बात दिल में नहीं उतरती। आज तो ईश्वर ने भी सीता के आगे जड़ता धारण करली है ॥६॥ उनके जिनेश्वर तस्कर है और तेरे जिन राम है तो हरि तेरे पैरों में पड़कर प्रणाम करते है । हरिपति ने बालकपन में उपकार के लिये छल का सेवन किया, जिससे हरि पर लांछन लगा ।।७।। ध्यान अनुभव की लहर सारंग में चंपा के समान महकती है। श्री शुभवीर विजय ने शिव वधु को घर तोड़ते हुए पकड़ लिया है ।।८।।
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