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आतम अनुभव बिन नहि जाने, अन्तर ज्योति जगावे । घट अंतर परखे सोही मूरति, आनन्दघन पद पावे ॥अवधू०॥६॥
मनुष्य सम्यग ज्ञान के बिना जीव अजीव आदि नौ तत्वों का सूक्ष्म विचार करने में समर्थ नहीं हो सकता। जब तत्त्व विचार में समर्थ होता हैं तभी आत्म तत्त्व को निश्चय कर सकता हैं, तभी आत्मा की ज्ञान ज्योति को प्रकाशित करता है । इस प्रकार घट रुपी शरीर में स्थित ज्ञान आदि गुण वाली अन्तरात्मा को जो पहचान सकता है, ऐसा व्यक्ति ही शाश्वत आनन्द से व्याप्त मोक्ष पद को प्राप्त कर सकता है ।
[ इस पद के छटे छंद की अंतिम पंक्ति में कवि ने अपना नाम सूचित किया है । ]
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