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: हरियाली :
[ कृतः श्रीमद् अध्यात्मयोगी आनन्दघनजी महाराज ] ( प्रेषक : चन्दनमल नागोरी, छोटी सादड़ी - मेवाड़ )
हरियाली
सरस्वती स्वामी करोरे पसाय, हुंरे गाउं रुडी कुलवहु रे पियुडो चाल्यो छे परदेश, घरे रही रुडं शीयल पालीये रे ।। हीरु नीरु सासरडे जाय, नानी ते धनुडी रमे ढोंगले रे । नरपत परपत निशाले जाय, नानी ते परियापत पोढयो पालणे रे ॥ बारे वर्ष आव्यो रे नहि, छोकरडा ने काजे यचकडा नवि लाविओ रे ।
तने पुछु शुकुलोणी नार, पीयु विष्णु छोकरडा क्यांथी प्राविया रे || गोत्र देवे कर्यो रे पसाय, साथ गोत्रे गोत्र वधाविया रे । एटले उडीने लाग्यो रे पाय, धन्य पनोती तूं कुलवहु रे ॥ एहनो रे अनुभव ढोरसे रे जेह, ते पामे रुढी शिववहु रे । आनंदघन भणे रे सज्झाय, सुणवां श्रवणे सुखदायी रे ॥
हिंदी शब्दार्थ :
सरस्वती देवी मुझ पर कृपा करें, मैं कुलवधु के सुन्दर गीत की रचना कर रहा हूँ । पति परदेश जा रहा है, तुम घर रह कर सुन्दरशील का पालन करना । हीरु नीरु ससुराल जा रही है, छोटी घनुड़ी कंकर खेल रही है । नरपत परपत स्कूल जा रहे हैं, छोटा परियापत झूले में झूल रहा है । बारह वर्ष तक घर नहीं लौटा। बच्चों के लिये खिलौना भी नहीं लाया । हे सुकुलवंत वधु ! मैं तुमसे पूछ रहा हूँ कि पति के बिना बच्चे कहाँ से आ गये ? गोत्र देव ने कृपा की है, गोत्र देव ने गोत्र
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