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________________ विक्रम संवत २००३ जावाल (मारवाड) में श्री संघकी अत्याग्रह भरी विनति से चातुर्मासार्थे श्रीगुरु महाराजकी आज्ञासे मुनिश्री शिवानंद विजयजी और मुनिश्री निरंजन विजयजी पधारे तब मुनिश्री निरंजन विजयजीकी और (जावाल)के श्री संघके आगेशन श्रेष्ठिवर्य श्रीमान् शेठ ताराचंदजी मोतीजी और साकळचंदजी रासाजी की प्रेरणासे इस ग्रन्थरत्नमें मददगार गृहस्थों की शुभ नामावली---- ३०१) शा. ताराचंदजी मोतीजी ३०१) शा. कपूरचंदजी मोतीजी २५०) शा. साकलचंदजी रासाजी २०१) शा. मगनलाल कपूरचंदजी २०१) शा. लखमीचंदजी पञ्चाजी १०१) शा. साफळवंदजी मंछाजी १०१) शा. मूळचंदजी जोराजी पाडीव १०१) शा. हीरावंदजी कीसनाजी ह. साकलचंदजी हांसाजी १०१) शा. खीमाजी रीखवदास ५१) शा. भूरमलजी अमीचंदजी ५१) शा. साकळचंदजी हांसाजी ५१) शा. केसरीमलजी लखमीचंद ५१) बाई धनी खुशालजी ह. कपूरचंद हंसाजी ५१) शा. मनरूपजी गुलाबचंदजी ५१) झवेरचंदजी हीमाजी ५१) कपुरचंदजी भगवानजी ५१) नथमलजी नूतनचंदजी ५१) शा. ताराचंदजी चंद्रभाणजी ५१) शा. अकाजी मोतीलालजी १०१) पांचोराना एक श्रावक ह. पूनमवेद मोतीजी
SR No.008451
Book TitleSaptabhangimimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivanandvijay
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size4 MB
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