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________________ नि वे द न पू. मुनिश्री शिवानंदविजयजी महाराजश्री तथा मुनिश्री निरंजनविजयजीने मरुधरना निवृत्तिमय प्रदेशमा चोमासा माटे प्रवेश कर्या पछी आ ग्रन्थ छपाववा माटे जावालना आगेवान श्रावकोने भावना थई अने अमुक रकम एकठी करवा लाग्या । ते बदल ते ते रकम आफ्नारा अने तेने माटे प्रेरणा करनार ते भाईओनो तथा आ ग्रन्थनी रचना करनार परमपूज्य पन्न्यासजी महाराजश्री शिवानंदविजयजी महाराजश्रीनो तेमज वारंवार ग्रन्थ जल्दी पुरो थाय तेमज श्रावकोने ग्रन्थ छपाववा प्रेरणा करनार मुनिश्री निरंजन विजयजीनो तथा आ पुस्तकनां गुफो वांचवामां मदद आपनार पू. पंन्यासजी महाराजश्री धुरंधरविजयजी महाराजनो तेम ज मुनिश्री कुसुमचंद्रविजयजी महाराजनो आभार मानवामां आवे छ । संवत् २००७, ज्येष्ठ वदि ११ पांजरापोळ, अमदावाद. निवेदयित्री जैन ग्रंथ प्रकाशक सभा.
SR No.008451
Book TitleSaptabhangimimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivanandvijay
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size4 MB
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