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________________ ११ परिश्रम देना अनुचित समजता हूं। इसलिये तद्विषयक ज्ञान मौजूदा ग्रन्थसे जाननेकी कोशीश करें । यद्यपि इस विषय में जीतना लिखना चाहे उतना लिख सकते है, पृष्ट के पृष्ठ लिख सकते है । लेकिन यह विषय इस ग्रन्थ से समजाने के लिये लेखक महाशयने प्रयत्न किया है वह तभी सफल हो सकता है जब की उसका संपूर्णतया प्रफुल्ल चित्तसे जनता उपयोग करें । मुझे आशा ही नहीं संपूर्ण विश्वास है कि लेखक महाशयका परिश्रम सफल होगा। I इस तरह ' सप्तभंगी - मीमांसा' और 'निक्षेप-मीमांसा' विषय समजाने में मेरी दृष्टिसे लेखक महाशयने सरलता पूर्वक अविरत प्रयत्न करके अपनी लेखनीको विराग दीया है, फीर भी समझता हूं की मेरे अभिप्राय को इतर विद्वान् अपनाते है या नहीं यह बात अपनी २ मति पर अवलम्बित हैं। विद्वान की दृष्टि कीली मी प्रकारकी त्रुटी मालूम होवे तो लेखक महाशयको सूचित करे ताकी द्वितीयावृत्ति में सुधार किया जाय और तद्विषयक त्रूटी पूर्ण हो । अन्तमें शासन देवसे प्रार्थना है कि जिनशासन सदा जयवन्त रहो और ग्रन्थ के प्रति सभीका आदर सम्मान हो और जनता इसका सदुपयोग करो || हठीभाईकी वाडी; ज्येष्ठ कृष्णा अमदावाद, एकादशी, शुक्रवार, २००७ भवदीय, अमृतलाल मोहनलाल संघी व्याकरण तीर्थ- वैयाकरण भूषण
SR No.008451
Book TitleSaptabhangimimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivanandvijay
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size4 MB
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