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________________ इसी तरह सप्त प्रकारसे. घटः पदार्थकाः अस्तित्वादिः वर्णतः पिया जाता है। इसी तरह इतर पदार्थोंके धर्मों को भी समजना चाहिए। विद्वान् लेखक महाशयने अपनी सरल गिर्वाणगिरामें यह सात भांगे समजाने के लिये प्रकरण, गुच्छ, उल्लासा परिच्छेद या उद्देशकी पद्धति अंगीकार नहीं करके नव्यनयकी प्रणालिकासे सभी विषयोंको एकी प्रकरणसे समजानेकी कोशीश की है। जिसमें प्रारम्भमें मंगलाचरण, बादमें परम दादागुरु की स्तुति, परमगुरुकी स्तुति, स्वगुरुकी स्तुति, प्राचीन विद्वान् प्रमुखकी स्तुति, नययुक्तिकारक श्रीमदयशोविजयजी उपाध्यायजीकी स्तुति, ग्रन्थविषयक ग्रन्थनायक और उसके फलकी प्रार्थना करके सलंग सप्तभंगीका विषय नव्य न्याय की रचनासे स्वशास्त्र और परशास्त्रद्वारा समजाया है। अन्थरचनामें विषयका समर्थन करते प्राचीन विद्वानीको प्रमाणिकतासे. स्वीकारे और उसके कथनका उल्लेख करके तद्विषयक विचार भी स्वतंत्रतासे प्रमट किये हैं। एसे. पूर्व विद्वानोंकी नामावलि यहां उचित होनेसे की जाती है । यद्यपि यहाँ लंबाणका भय रहता है फीर भी ग्रन्थकी प्रमाणिकता बढ़ाने के लिये और ग्रन्थ निर्माता के प्रति लेखक महाशय का सद्भाव दिखलाने योग्य होनेसे पूर्व ग्रन्थकार महानुभावोंके नाम मात्र दिखलाये जाते हैं । पूज्यपाद वादिमुख्य वादिदेवसूरि सूत्रसंवाद, मल्लवादि, पूज्य
SR No.008451
Book TitleSaptabhangimimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivanandvijay
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size4 MB
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