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अध कसने के लिये । इसा लिये शब्द रचना सब्दः या वाक्याका बोध करानेवाली होती है। इसी तरह "प्रमाण' भी वस्तुका संपूर्ण प्रकारले ज्ञान कराता हैं और ज्ञानको प्रकाशमें रखनेवाला जो वाक्यः है. उसको प्रमाणवाक्य कहते है ।
वस्तुके एक अंशके ज्ञानको 'नय' कहते है जब अमुक अंशक ज्ञानको प्रकाश में लानेवाले को 'नयवाक्या कहते हैं।
उपयुक्त 'प्रमाणवाक्य' और 'नयवाक्य' सात भागमें बांटा जाता है, इसलिये उसको — सप्तभगी ' कहेते हैं।
जैनशास्त्रमें वस्तुके प्रत्येक धर्मका कथन अस्तित्व और तदभाव... नास्तित्वस्वरूपसे कीया जाता है और उस बीनाको सात प्रकारको शब्दरचनासे कही जाती हैं जैसे
एक पदार्थ घड़ा है जिसके असंख्य धर्म हैं, जिसमें से एक अस्ति धर्मको लेते है।
यह अस्ति धर्म निम्नलिखित शब्दरचना देखनेसे समजमें आ
स्यादस्ति एव घटः १, स्यान्नास्ति एव घटः २, स्यादस्ति एव स्यान्नास्ति एव घटः २, स्यादवक्तव्य एव घटः ४, स्यादस्ति एव घटः स्यादवक्तव्य एव घटः ५, स्यान्नास्ति एब स्यादवक्तव्य एव षट: ६ स्यादस्ति एव स्यान्नास्ति एव स्यादवक्तव्य एव घटः ७ ॥