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________________ Names-रुद्र, रुद्रदास, मेत्रगण, इन्द्र, इन्द्रजय. 41 42 43 44 45 They are 45 in all. For their colours see-शिलरत्न पूर्वभाग 7th अध्यायv. 42 to 45 and also विश्वकर्मप्रकाश(१) महेन्द्र, (२) राक्षस, (३) मृष, (४) वायुपवन, (५) निशाचर, (६) चरक, (७) उदिति, (८) रुद्रजय, (९) इन्द्रराज, राजयक्ष्मा समरांगणसूत्रवार ( अध्याय 14th ) is the only वास्तुग्रन्थ that gives the निघण्टु of these वास्तुपददेवता. I append it as under: ब्रह्मा = असंभव, सहस्त्रानन, अचिन्त्यविभव वह = सर्वभूतहर, हर पर्जन्य = वृष्टिमान, अम्बुदाधिप अयन्त कश्यपभगवान् महेन्द्र = सुराधिश, मुराधीश, दनुजानां विमर्दन विवस्वान् = अहस्कर सत्य = भूतहित, धर्म भूश काम, मन्मथ अन्तरिक्ष नभस् माप्तः - वायु पूषा मातृगण वितथ = अधर्म, कलेरप्रतिमः सुतः गृहक्षत बन्द्रतनय-बुध यम प्रेताधिप-son of विवस्वान् गन्धर्व - नारद भाराज = son of निति मुग - अनन्त, स्वयंभ-धर्म पितरः - पितृलोकनिवासिनः देवाः दौवारिक - नन्दी, प्रमथानामघीश्वर सुग्रीव = आदिप्रआपति-मनु पुष्पदन्त = son of विनता, महाजव: = पाथसां नाथः, लोकपाल असुर -सिंहिकात्मज शोष - सूर्यपुत्र- शनैश्चरः पापयक्ष्मा - क्षय रोग 23 वर माग - वासुकि मुख्य = स्वधा, विश्वकर्मा भबाट - चन्द्र सोम
SR No.008438
Book TitleAparajitaprucchha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB Bhattacharya
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year
Total Pages810
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Art
File Size12 MB
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