________________
विषय लोक पत्र । विषय श्लोक पत्र पनीहारा, घटी, दीपस्थान, खाणीया, | शाखागीरे-बोलवक्षने फरफूल भावे रसोईघर, द्रव्यकोष-सीडी, गृहके क्या । शुष्कवृक्ष पल्लयात हो. विना ऋतुके स्थानमे रखना
फल पुष्पपत्र हो, वृक्ष प्रमाण जलगोरे । वास्तुद्रव्यका गुणदोष १५-१५५ ६७ येह सब अपशुकन समजना १७९-८१ ७६ गृहकार्य में कीतने जातीका काष्टको मंदिर या गृह पृष्ठभागमें छीद्र न होना प्रयोग करने में गुणदोष १५६-५७ ६८ | इष्ट काममे थरमान रखना १८२-८३ ७७ का दिशामें मस्तक रखके शयनकरने । भितद्वार पाटबीम स्तभ नीचेकी भूमिसे में गुणदोप
१५८ , विटिम उपरको भूमिमे न रखे १८४ ७७ द्वारवेषमें क्या कथा
गृह या प्रासादनी पहेली भूमिका उदय बेध कीतना दर १५९-६१ ६९ | उपरकी भूति १२ अथ काम करना द्वारका उत्तरङ्ग नीचा हो तो
नहि तो समवेध होता हे १८५ ७८ ललाटवेध, तुळावेध १६३ ७१ | सूर्याकार या विकर्ण न बनाना १८६ ७९ स्तभद्वार भिति, पाट नीचेकी भूमिसे द्वार सम्पने स्तंभ-पाट घोडा भीत
उपर विपरीत न करना १६७ ७१-७२ | हो तो दोष हे १८७ " श्रेणीभङ्ग ब्रह्म शेष १७१ ७३ | समला-न कागवेध १८८ , भवनका बीचला चोकमे तीन दिशामें प्रस्तावनामें जहां स्वच्छता विवेक छपरेका नेवा जलधारा करनी चारो आदि हे वहां लक्ष्मी बात करती है तरफसे न पडना चाहीए १७२ ७४ या समीप वक्षका गुणवेोष १.२६ मूल घरसे डेहली बलाणक नीचे करना
| अथ प्रवेशअशास्त्रीय वास्तु न करना १७३ ,
| १ उत्मंग, २ होनबाहु, ३ पूर्णवाहु, अथ गृहाद्भूतानि अकस्मान अकारण
४ पत्यचाय १८९-१९३ ७९-८१ द्वार उद्घाटन, स्वरनाद, कम्प, तोरण। ध्वज भङ्ग अकारणगीरे द्वार-गढ गृहगीरे
ब्रह्मवाक्य-वेध और वेध्यका अंतर गृहभूमि फटे कम्पे हमे शृगालादि।
प्रमाणसे दोष मुक्ति कहां कहां पशु प्रवेश अकारण रक्तधारा सप्रवेश
दोष लगता नही १९४-१९६ ८१-८२ ये सर्व अकस्मात अकारण हो तो दोष उत्पन्न हो ते उसका नेष्ट फरकी महा दोष जानना १७६-७८ ७४-७५ अय क्षद्भितानि
मानहीनका कहाँ दोष लगता नहि गृह समीपका वृनमें से स्दन-हास्य । मौसम
१९४ ८३