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विषय लोक पत्र विषय लोक प २१ प्रकारके दुषितगृह-
दुकान-वावमुख आगे चोडा पीछे १ पर्व नगर, २ पर्वतपापाग मोलीत, । सकडा अच्छा . १३४ ६१ ३ पोषाग गुफाके मीलन, ४ जलप्रवाह गोखपर खुंटा, द्वारपर उपरी भूमिमें समीप, ५ परत मध्यमे, ६ नदी समीप, स्तंभ हो या स्तंभपर द्वार हो एक द्वार ७ दो पहाडोके बीच. ८ पहाड ताफ पर दे। द्वार हो की खंड या एकी स्तंभ एक दीवालसे भिन्न होय, ९ घरमे मदेव यह सब दुषित हे १३५ ॥ जलप्रवाह हो, १० किंवाड में शन | गृहके कोण गोलम्वृत हो या १-२-३ आता हो, ११ घरमे कौन उल्लुका | को ना हो दाहिनी या बांयी ओर वास हो, १२ किंवाड-जाली खिडकी लवे हे एसे गृह दुषित हे १३६ ६२ मोरी हीन हो छीद्र हीन हो, १: घरमे | फलवाला या पुष्पवाला वृक्ष या शुभ खरगोश शब्द करे, १४ अजगर साप } चित्रा लेखन कराना १३७ ६२ का काम हो, १५ जे गृहपर बीजली दिमुह, पदलोर, गर्भलोप. थरभंग पडी हो या अग्निसे दुपित हो. १६ दोष विषय पद तुलास्तभ विना स्मशान दुपिन, १७ समाधी हो, निम १८ विना वसा ( अवारु), १९ म्लेच्छ ।
। पीडीया बड़ाद-पगयीका इद्र यम, चांडालका वास हो. २० भूमिमें बील
राजा बाकोरा हो, २१ घो-गोह रहती हो ।
अथ संवर्धनएप्ता २१ प्रकारका दुषितगृह जानना ११९-१२४ ५५-५६ ।
गृह - भवनकी वृद्धि करनेमे गुण दोष जे गृह देखनेही भयंकर लगता हो १२५
| बारा भूमिका सो हायसे उंचा मकान
। गृहमें क्या क्या प्रकारके चित्र न
न करना (गर्गमत) १४२-४३ ६४ आलेखना १२६-१२७ ५७ | तुलावेध, तालवेध, तलवेध, वास्तसारमें कहेहए सात प्रकारके वेध | वावध
१४४-४६ ,, १ जलवेध, २ कोणवेध, ३ तालुव, वास्तुपुरुषका क्या अङ्ग न ४ कपालवेध, ५ स्तंभवेध, ६ तुलावेध, । दबाना ७ द्वाग्वेष १२८-१३३ ५९ | देवध्वज-कुप ओर वृक्षकी दुसरा तीसरा गृह आगे सकडा पीछे चोडा हो एमा । प्रहरका छाया दोष १४८-४९ ६६ गह दापित नहि हे १३४ ६१ / वाजिकवेध, भागषेध १५०-५२ ६७