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विषय श्लोक पत्र | विषय लोक पत्र कम चूरा या अधिक चूना, सधि- मूलमूर्ति और परिकर बर्णशंकर चाला विना माथाभारी, विना
पाषाणकी उदयमें सम वेकी निम या कम निमका दोष ४० २०, __ आगुलको प्रतिमा न बनाना ५५ २६ । भिन्नदोष
प्रतिमा दोषभिन्नदोषका लक्षण, क्या देवको हाथपावहीन, अव्यवहृत, नासिकाहीन,
भिन्नदोष लगे या न लगे ४१।११। ३ २० चीपटा गालवाली, उपदेखाती, पाचीन द्वारका रेखाचित्र
उंची द्रष्टिवाली विकराल, नीची भाज्य प्रासाद या धजहीन प्रासादमें द्रष्टिवाली नासिका पति द्रष्टिवाली असुर भूतप्रेतादि वास
बगल द्रष्टिवाली जंधा कटिहीन, करता है
नीचेसेहीन, भाल नख मुख विभागशिखरका शुकनाश और मंडपपरका हीन, पतलाद्रव्यवाली, पतला उदयघंटाका समन्वय
४६ २२ वाली, रुदन या हसती, अधिक गृहमंदिरमें ध नादंड न रखना ४७ २३ अंगवाली लंबी आंख उघाड बंध गृहपूना देवप्रतिमा प्रमाणादिका दोष करता आश्चर्य वाली प्रतिमाके गृहपूजाकी मूर्तिका प्रमाण ४८ २४ | चित्र
५६-६४ २७-३० . गृहपूजन में क्या क्या देव कीतना अन्याय धनसे बनाई हुइ, दुसरा कार्य के रखना अधिक नहि ४९-५० २४ लीये लाये पाषाण हो, कमी जास्ती एक हस्तप्रमाणके गृहमें स्थिर
अंगवाली मूर्ति मूर्ति या लिङ्ग न रखना ५१ २५ क्या प्रकारको अशुद्धि हुइ हो एसा प्रतिमाद्रव्य मानाधिकके परिवार होन लिंग या मूर्तिकी फीर प्रतिष्ठा मूर्ति घरे न पूजना ५२ २५ करनी ?
६७ ३१ तीन जैन तीर्थकरकी मूर्ति गृहस्थके सो साल पहेले महापुरुपासे स्थापित
घर न रखना पूजना ५३ २६ / या उनकी सानिध्यमा स्थापित लिंग प्रतिमादोष
खंडित या व्यङ्ग हो तो भी त्याग खील, छीद्र, पोल, जीवजाला,
न करना सांधावाला रेखामंडल गार
लिंङ्ग केसी हालतमे खंडित चलित गांउवाला दुषण द्रव्य से प्रतिमा पतित अग्नि स्पर्श हो तो भी न बनाना
५४ २६ । समुद्धार करना ६८-६९ ३२