________________
(९५ )
1
जालीमें ऋषि संघ देवाके साथ प्रतिष्ठित करे | परनालके मकर मुखको गंगाजल, और चंडेशमें गोमतीका आव्हाहन करे । शिखर के भद्र परके पांच उरु श्रंग ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, ईश्वर, और सदाशीवका आव्हाहन करे । शिखरमें इश्वर, कलशमे इन्द्र, आमलसाराके गलेमें अंबरदेव, बीचके आमलसारमें निशाचर, चंद्रसमे पद्माक्ष, जिस तरह आमलसारमे आव्हाहन करे कलश में रुद्र और गोल एडकमें सदाशीवका आव्हाहन करे । प्रासादके ऊपांगों में कर्ण प्रतिरथ, रथ, नंदी और भद्रमे अनुक्रमसे सद्यो, वाम, अघोर, तत्पुरुष और पांच अंगमे इशका आव्हाहन करना चाहिये । भिस तरह पांच मुखके पांच अंगोमय ash जानने चाहिये | वैसे प्रासाद तीनों ओरके अंगोका जाने । कम या ज्यादा थके मुताबीक देवोंका स्थान जाने । अगर घरोंकी हीन प्रतिष्ठा करें तो हीन फलदाता, और अधिक हो तो अधिक शुभ कारक समज्ञे । २४०-२४३
अर्चाजुक्सि थर स्तंभ पीठ मंडोवरेषु च ।
पुजन लोपयेद्यत्र निष्फलं तत्प्रजायते ।। २४४ ॥
દેવની પૂજા, પ્રાસાદના થા, સ્તંભ, પીઠ અને મડવર આદિમાં દેવતાઓનુ પૂજન કરવું. જો જેમાં લેપ થાય તે પ્રાસાદનું પુણ્ય કૂળ નિષ્ફળ જાય છે, ૨૪૪
-देवकी पूजा, प्रासादके थर, स्तंभ, पीठ और चंडोवर आदिमें देवताओंका पूजन करें । अगर उसमें लोप होगा तो प्रासादका पुण्यफल निष्फल जायेगा । २४४
श्री विश्वकर्मा कहते है किं प्रासादका समस्त अंङ्गमे देवता . न्यास = आव्हाहन क्रमसे कहते है :