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________________ ४८ 48 * प्रासादमञ्जरी - विदिशाके दिग्पालो 781 इशानदेव अग्निदेव नैत्यदेव थायव्यदेव ८७।। भाग हुयेः नोचेके ११०|| भाग से मिलाकर १९८ भाग हुए। इनके ऊपर ५१ भाग के तीसरे मंजिलका मंडोवर छ थर का. मंचिका सात भाग, जंघा सोल भाग भरणी सात भाग; शिरावटी चार भागः पट्ट पांच भागः उपरका छज्जा बार भाग मिलके ९१ भाग मिलके १४९ भागका यह · महा मंडोवर” तीन जंघा तोन मजिला और दो छज्जा वाला अपराजित प्रथमें वर्णित है। __दो जंघा और १ छज्जा वाली दुमंजिलका १९८भागका मेरु मंडोवर कहा गया है। ऐसे मेरु मडावर, द्वारिका, आबका चोमुख एवं सोमनाथ में है। ऐसे मडोवरके आलेख एवं चित्र देखने से भीतरी स्तभो आदि भूमिके उदयमान प्रमाण एवं स्तरोंके समसूत्रका ख्याल हो सकता है. बाहरी मंडोवर के स्तर एवं भीतरी स्तंभति भूमिके उदय--थरांका समन्वय समसूत्रादि सांधार प्रासादों के लिये शिल्पग्रथों में कहे गये हैं. निरंधार प्रासाद में पृथक् रीतसे कहे गये हैं (श्लोक ६६-६७). दो जघा के मडोवर के उद्गम दोढीया के थर पहली मंजिल के पाट समसूत्र में रखनेका कहा है। उस पाट के ऊपर भूमिकी छन भरणीके थरमें आ जानी चाहिये: ऊपरका छज्जा एवं दूसरी भूमि के पाट समसूत्र में रखना । मेरु मंडोवर एवं महामडोवर सांधार प्रासाद् के लिये बनानेका यही विधान है। दूसरे निरंधार प्रासाद के लिये (श्लोक ६६-६७ में) सामान्य प्रमाण कहा है।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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