SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रासादमञ्जरी * आये हुए पीठमानके उदयके ५३ भाग करने और निकाला २२ भागका रखना। थरो में नव भागका जाडम्बा, सात भागकी कणी अंतराल; सात भागका भाग निकाल छज्जी पासपट्टी, बार भागका गजथर (गजपीठ); दश ५ भागका अश्वथर; और आठ भागका नरथर। इस अनुक्रम ७ का अतराल ३॥ से थरोंका निर्माण करना: निर्गम निकाला कर्णिका अग्र ७ छज्जी पासपट्टी ॥ भाग से जाडंवा ५ भागः पास पट्टोसे कर्णिका साडातीन: १२ गजथर गजथरसे ग्रासपट्टी साडाचार भागः अश्वथरसे गजथरका १० अश्वथर ८ नरथर २ निर्गम चार भाग; नरथर से अश्वथर तीन भागः खुरा से ६३ नीर्गम २२ नरथरका निर्गम दो भाग। कुल निकाला (उठाव) का कुल २१ भागका खर से जाडंग पट्टी तकका जानना । प्रासाद एवं राजभवन को पीठका ही आधार होता है। बिना पीठका प्रासाद आश्रयहीन जानना । पीठ बिना के प्रासाद से विनाश होता है । ५७-५८-५९-६० ____ अथ प्रासादोदयमानः--एक हाथसे पांच हाथ (गज) तक के प्रासाद कर्णे जितनी चोडाई हो उतना उसका उदय उंचाई मानना । छः से तीस हाथ (गज) तक के प्रासादके लिये प्रत्येक गज पर बारह बारह आंगुलकी नागर मंडोषर वृद्धि करते जाना; इकत्तिस से पचास हाथ तक के प्रासाद के २० कुंभा लिये प्रत्येक हाथ पर नौ नौ आंगुलकी वृद्धि करते जाना; इस प्रकार उदयमान पीठ के मथाले से छज्जाके मथाले तककी ८ कलशा २॥ अंतराल उचाई जानना ६१ ८ केवाल ९ मंचिका अथम डोवरः-(१४४ भाग) पीठके उपरसे छज्जो तकके ३५ जंघा प्रासादके उदयके १४४ भागकरने, उनमें से पांच भागका १५ उद्म खराकाथर; कुंभा बीश भाग; कलशा आठ भाग; अन्तरालः ८ भरणी अंधारी ढाई भाग; केवाल आठ भाग; मंचिका नौ भाग; जंधा १० शिरावटी पेंत्तीम भागः उद्गम-दोढिया पंदरा भागः भरणी आठ भाग: ८ महाकेवाल शिरावटी दश भागः महाकेवाल आठ भागः अंतराल ढाई भाग २॥ अंतराल उपका छज्जा तेरा भाग उंचाः और दश भाग निर्गम-निकाला १३ छाय १४४ रखना; प्रासादके अङ्ग उपाङ्ग (फालना) स्पष्ट दिखाने के लिये क्षीरार्णव प्रथमें एक गज से प्रासादके लिये ३३ आंगुल; दो गजके ५५ आंगुल; तीन गजके ७७ आंगुलः चार गजके ६ गज १ आंगुलः पांच गजके पांच गज १ गुल; छ गजके ५ गज २१ आंगुल; सात गजके ६ गज १७ आंगुलः आठ गजके प्रासादके लिये ७ गज ९ आंगुलका उदय-उँचाई रखनी।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy