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, Prasad Manjari *
अथमिट्ट-जगती के ऊपरी भागमें खरशिलाके ऊपर मिट्ट बनाना। उसका प्रमाण यह है। कि एक हाथ (गज) के प्रासाद के लिये चार आङ्गलका भिट्ट उदय बनाना उसके उपरान्त दो से ५० गज तक के प्रासादके लिये प्रत्येक गजमें आधे आधे अंगुलकी वृद्धि करनी। उन मिट्टो में से एक दो-और तीन इस प्रकार उत्तरोत्तर बेड से छोटा बनाते जाना चाहिये-उसका निकाला अपनी अपनी उंचाइ के चौधे भागका रखना। ५६-५७
अथपीठ-प्रासादकी उंचाई (पीठ ऊपरसे छज्जा मथाला तक) के २१ भाग करके उसके पांच से नव भाग तक पीठका उदय रखना। इस प्रकार पीठ के पांच भेद उदय प्रमाणके कहे हैं (दूसरे भी प्रमाण अन्य ग्रथोंमें कहे हैं)।
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LEPATION ८ शोरार्णव एवं दीपार्णव ग्रथमें पीठ के थर के पृथक पृथक चार मान