________________
* प्रासादम अरी * प्रासादके अंगों चारसे लेकर ११२ तक के भाग कहते है। एक तलका प्रासाद (अट्ठाई दशाई बाराई चौदाई) के ऊपर शिखर अनेक प्रकारके चडते हैं किन्तु उनके ऊपर के शिखर अंङ्क की संख्या एवं आकारसे प्रासादकी जाति एवं नाम ज्ञात होता है। ३६-६७.
अथ जगती चोरस, लम्बचोरस, अष्ठांश गोल और लम्बगोल। यह पांच प्रकारकी और जैसा प्रासादका आकार हो वैसा जगती के तलके स्वरुप जानना । ३७ प्रासादसे तिगुनी चारगुनी या पांचगुनी इस प्रकार तीन विधि जगतीके विस्तार मानसे (ज्येष्ठ मध्यम एव कनिष्ठ मानके क्रमसे) एक दो या तीन भ्रमयुक्त। जगतीकी योजना होती है, प्रासादसे छगुनी सातगुनी और तीन भ्रमयुक्त जगती जिनेंद्र प्रासाद एवं द्वारका के विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा के प्रासादकी जगती रखनी लंबाई में सवायी डयोढी. या दुगुनी। इस प्रकार मंडपके क्रमसे जगती करनी चाहिये। ३७-३९
जगतीकी उंचाई एक हाथसे बारह हाथ तकके प्रासादके लिये गजमें आधे गजकी रखनी । तेरहसे बाइस हाथ (गज-हस्त) तक प्रासादके लिये गजसे एक तिहाई अर्थात आठ आठ आंगुलकी वृद्धि करते जाना। तेइस से बत्तीश हाथ (गज) के प्रासाद के प्रत्येक गज-छ छ आंगुलकी वृद्धि करते जाना । तैंतीससे पचास हाथ गज के प्रासाद के लिये प्रत्येक गज गजका पांचवाँ भाग अर्थात् ४॥ आंगुलकी वृद्धि अगतीकी उंचाईमें करते जाना। जगती में कोणों पर दिग्पालों के स्वरुप सृष्टिमार्ग से बनाना चाहिये। प्रासादके प्राकार (किल्ला)के आगे द्वार मंडप बनाना प्रकारसे रखनेकी प्रथा शिल्पिामे पर परासे है। १ समदल २ हस्तांगुल ३ भागवा ४ आर्या ये चार प्रकारसे फालनाके निर्गम रखे जाते हैं भागवा अर्थात प्रासादका विभक्ति के जितने विभाग कहे गये हों उनमें से एक भाग का निकाला-निर्गम रखना वह भागवा कहलाता है।
उणङ्गों में “आर्चा" प्रनारके (निगम) निकाला अंगुल दो अंगुल जितने अल्पही होते हैं परंतु इस प्रकारके निकाला संवरणा (शामग्ण) युक्त प्रासादके ही होते हैं। भागवा एवं हस्ताङ्गल विधिके उपाङ्गोका निकाला छोटे होते हैं। जिमसे उनके ऊपर शिखर बनानेके कार्य में शिल्पिके बुद्धि चातुर्यको कसोटी रुप होता है। जब कि "समदल" निकाले को विधि में बहुत छूटछाट रहती है।
४ जगती के उदय पीठ खरा कुंभा कलशा अन्तराल और उनके सबके ऊपर पुष्पकट (गीलता) के घाट करनेका विधान है।