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________________ * Prasad Manjari ३३. ( प्रतिष्ठा ) समय इन चौदह मुहूर्ती में वास्तु शान्ति अवश्य करनी चाहिये । २८-२९ प्रासादका प्रमाण कहाँसे लेना ? एक हाथ हस्त (चोविश आंगुल) पचास हाथ (गज ) तक का प्रासाद का प्रमाण दीवार के बाहर रेखासे कुंभाकी बीच के अंतर के अनुसार लेनेको कहा है। दश हाथसे ऊपरके प्रासादके लिये भ्रम (परिक्रमा) करना चाहिये । जो ३६ हाथ गज तक के प्रासादके लिये (एक दो तीन अथवा चार भ्रम होते हैं ) भ्रम करनेका विधान है। ऐसे भ्रम वाले प्रासाद “सांधार" प्रासाद कहते हैं, और भ्रम रहित प्रासादको निरंधार प्रासाद कहते हैं । ३०-३१ 33 HAY DISH ad સુ गर्भगृह (-युक्त) गर्भगृह (सुभ्युक्त) गर्भगृह (HANE EYE) प्रासादना गर्भ गृह - (१) अंतर उपांग- प्रतिभद्र, सुभद्र, भद्र, चतुरख २ बाह्य-समदल, भागवा, हस्तांगुल, आर्चा. पांच हाथसे पचास हाथ (गज ) तक का मेरु प्रासाद होता है । प्रासाद के कुंभादि थरोंके निर्गम-निकाले समसूत्र में अवलंब - ओलम्बाके अनुसार रखने चाहिये। किंतु उनकी पढ़ छज्जा थोडा बाहर निकलता रखना चाहिये । प्रासादके अङ्ग विभागसे तीन, पांच सात या नव फालना (भद्ररथ प्रतिरथादि) रखना चाहिये, अंगोकी संख्या उनके मध्य स्थित पानीवार से भिन्न होती हैं फालना रेखा - कर्मसे दुगुना भद्र " विस्तार ( सामान्यतया) होता है । ३२ ३३ ३४. समदल हस्तांगुल फालना विधि :- रथ नदी प्रतिरथादि फालनो का निर्गम-निकाला की विधि साधारण तथा दो प्रकार की कही गई है। जितने अङ्ग फालना रथ नंदी प्रतिविभाग हों, उतना उनको निकाला रथादिके रखना चाहिये वह "समदल" कहा जाता है ! और जितने हाथका प्रासाद हो उतने अंगुल प्रमाण अंग फालना (रथ प्रतिरथादि) के निर्गम निकाला रखना। यह हरतांगुल " विधि जाननी ३५ 66 उ प्रासादके अंग प्रत्यंगके निकाल चार
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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