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________________ भूमिका लेखक, अशियाखंड के सुप्रसिद्ध कला स्थापत्य का मर्मज्ञ-प्रखर पुरातत्वज्ञ डॉ. वासुदेवशरणजी अप्रकालजी--अध्यापक-कला और स्थापत्य विभाग-काशी विश्वविद्यालय भूमिका डॉ. श्री वासुदेवशरण अग्रवाल श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुरा हम सब के धन्यवाद के पात्र है। क्योंकि उन्होंने भारतीय स्थापत्य एवं शिल्प शास्त्र के कई उत्तमग्रन्थों का उद्धार किया है। इससे पूर्व वे शिल्प के महान् ग्रन्थ दीपार्णव का मूल सानुवाद और सचित्र प्रकाशन कर चुके है । वह प्रमाणिक ग्रन्थ देव मन्दिरों के निर्माण से संवान्धित बहुविध सामग्री से युक्त है । प्रस्तुत ग्रन्थ "प्रासाद मजरो" को मूल अनुवाद और विस्तृत प्रस्तावना के साथ प्रकाशित करने का श्रेय श्री सोमपुराजी को है । मुझे इस बात का हर्ष हैं कि दीपार्णव की भांति “प्रासाद मञ्जरी" की भूमिका लिखनेका कार्य श्री प्रभाशंकरभाई ने अपने सहज-स्नेह वश मुझे सेांपा है । में उनके इस सत्प्रयत्न का स्वागत करता हूं। उन्होंने अपने इस प्रन्थ का विस्तृत प्रस्तावना में भारतीय स्थापत्य शास्त्र और स्थपतियों के संबन्ध में बहुत सी मूल्यवान् और रोचक सामग्री दी है-उसे पढकर मुझे ज्ञान-लाभ और प्रसन्नता हुई हैं । श्री प्रभाशंकर ओघडभाइ प्राचीन स्थापत्य वंश के रत्न हैं और उन्होंने स्थापत्य शास्त्र के प्रायोगिक विज्ञानकी अभितक रक्षा की है । परंपरागत ऐसी किंवदत्ती है कि सौराष्ट्र देश में प्रभास पट्टन में भगवान सोमनाथ के महान् देवालय का निर्माण हुआ इसी समयसे सोम पुरा स्थपतियों के पूर्व वंशो का प्रारंभ हुआ। अवश्य ही उन स्थपतियों ने एक नवीन स्थापत्य शास्त्र,वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र का जन्म दिया। उन्हीं की संचिलित प्रयोग विधि से सौराष्ट्र प्रदेश में एक से एक विलक्षण मन्दिरों का निर्माण होता रहा । इस संबन्ध में रेवतक या गिरनार के शिखर पर बने जैन मन्दिरों का एवं पालिताना के निकट शत्रुजय पर्वत पर बने मन्दिरों पर विशेष ध्यान जाता है । उसी संदर्म में अर्बुद या आपूपर्वत पर बने महान् जिनालयां का स्मरण भी आता है । कितने देवाल : सोमपुरा के स्थापतियों द्वारा बांधे गए अथवा उनके द्वारा प्रचारित शैली में निर्मित् हुए। इसका सर्वेक्षण गुजरात सौराष्ट्र और दक्षिणी क्षेत्रमें होना आवश्यक है। ऐसा उल्लेख है कि मेवाड
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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