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कैलास वासी पूज्य पिताजी और अपने ज्येष्ठ बंधु श्री. त्र्यंबकलाल भाजी और भाशंकर भाओ ने संस्कारका सिंचन किया और मार्गदर्शन दिया- जिसका कर्ज कभी नहीं चुका सकुंगा । कनिष्ठ बंधु रेवाशंकर भाओने अपने प्रथ प्रकाशन में जो श्रम अठाया और अपने अनुभव का लाभ दिया जिसके लिये मैं सुनका भी ऋणी हूँ। जिस तरह बड़ों-बुजर्गोका ऋण स्विकारते में पुलकित हो अठता हूँ । अनके शुभाशिर्वादोंकी कृपा वर्षा अहर्निश अपने पर होती रहे असी जगन्नियंता श्री हरिके पास अपनी नम्र प्रार्थना है ।
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अस ग्रंथका हिन्दी अनुवाद डुंगरपुर निवासी कुशल आचार्य श्री. भारतानंदजी सोमपुराने किया और प्रस्तावना का हिन्दीकरण अपने स्नेही मित्र श्री. कपिलराय जेसुखलाल आचार्य ने किया । अिन दो भाभियों का मैं आभारी हूँ । थकी भूमिका समर्थ पुरात्वज्ञ डा. वासुदेव श्री शरणजी अग्रवालजीने लिखने की कृपा की अन महाशयका में ऋणी हुँ ।
जिस ग्रंथका अंग्रेजी अनुवाद तथा प्रस्तावना अपने परम मित्र पुरातत्व रसज्ञ श्री. मधुसुदनभाओ अमीलालभाओ ढाकीने कर दिया जिसके लिये अन्होंने मुझे उपहृत किया है । अगर अनकी मदद न होती तो यह कार्य अितना न हो सकता और बार बार जैसे प्रकाशनों के लिये अन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया ।
ग्रंथका छपाओ काम जितनी जल्दी से अपने प्रिन्टिंग प्रेस कर देने के लिए श्री. चंदुलाल भाभी ( अपना प्रेस भावनगर) और प्रेस कामदारोंको धन्यवाद । प्रथमें दिये हुअ चित्र - नक्शे आदिके ब्लोक के लिये राजकोटकी रूपम् प्रिन्टरी के मालिक श्री. बाबुभाओ वाघेला का अहसानमंद हूँ ।
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सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ॥ "
ता. ३० ओगष्ट - १९६४.
श्रावण वद ८ जन्माष्टमी वि. सं. २०२०. शिल्पि निवास, पालीताणा ( सौराष्ट्र )
स्थपति-प्रभाशंकर 'ओघडभाओ सोमपुरा शिल्पशास्री