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________________ दशवी से तेरहवीं सदी तक जैसे विशाल स्थापत्य चालुक्य राज्यकुलने बँधाये । सिद्धपुरका रुद्रमहालय, सरस्वती के पूर्व में महाराज प्रासाद, पाटण के सहस्रलिंग तालाब की विशाल रचना सोलंकी राजाओंने की थी । अत्तर भारतमें असे विशाल स्थापत्योंका नाश विधर्मीयोंकी धर्मा धताके कारण हुआ । अनके कालमें असा भय सात सदी तक रहा अतः मंदिर रचना का अद्भव संकुचित स्वरूपका हुआ । ___ भारतके पूर्व में समुद्रपार हिंदी चीन , अनाम (चंपा), श्याम (सियाम -थाअिलेन्ड), जावा, सुमात्रा वगैरह दूर पूर्वके अग्निशियाके टापुओंमें भारतकी साहसिक प्रजा देढ दो हजार वर्षासे बसी हुश्री थी । वहाँ के भव्य स्थापत्य भारतीय कला और धर्मके हैं। कंबोडिया के अंकोरवाटके विशाल मंदिरका वर्णन करते तो बड़ा ग्रंथ हो जाय । भारतकी मय जातिके शिल्पियोंका समुदाय समुद्रपार (पातालभूमि) अमेरिकाकी ओर जाके वर्तमान मेकिसको प्रदेशमें बसे । हालमें भी माया नामकी अलग प्रजाकेरूपमें वे विद्यमान है । अनके रस्म-रिवाज, धर्म पृथक् है । अिजनेरी कलामें अमेरिकामें ये लोग-मेक्सिकन होशियार हैं। ये लोग सर्व विश्वकर्माके शिष्य शिल्पशास्त्री मय के वंशज हजारे। वर्षो से यहाँ बसे हैं असा माना जाता है । मुस्लिम शासक और भारतीय शिल्प । मुस्लिम राजाओंने तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दि के बाद कितने शहर, बसाये । दरगाहे', मस्जिदें, राजसभा, दीवान-ओ-खास, दीवान-ओ-आर्म और किल्ले देशकी गजपूत शैलीके बँधाये । अिस प्रकार अन्हेांने भी कलाको अत्तेजन दिया यह न भूलना चाहिये । बाहरके मुस्लिम बादशाह भारतमें आये, पुष्कल द्रव्यको लूटके साथ, हमारे शिल्पियोंको भी साथमें ले गये और अपने देशमें सुदर भवन निर्माण कराया । ताजमहल और दक्षिण के बीजापुर के विशाल गुंबद आवाज के परावर्तनक कारण खूब प्रशंसनीय हैं। दिल्ही, आग्रा, फतहपुरसीक्री, लखनौ, लाहौर, मांडवगढ, अहमदावाद, चांपानेर आदि शहर मुग्लिम बादशाह और सुलतानाने बँधाये और अनमें बेजोड काम कराये । भारतीय शिल्प के साथ पाश्चात्य शिल्पकी तुलना । भारतीय कला अधिक मौलिक और वैविध्य पूर्ण है अन्यत्र असा कम देखनेमे आता है । भारतीय शिल्प स्थापत्य पर आज सातसौ वर्षों के प्रहारके
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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