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________________ 83 * Prasad Manjari * ८३ पुण्यकादि२७ सन "मयडयो. 1 -4H - - - TH -चा-या २७ પુષ્પમ ६२सम - - G 4 -2 अथ बलाणक-3 ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, चंद्र और जिनके देवालयो, जलाश्रयों राजप्रासादो, सामान्य घरों, एवं दुर्गाके आगे बलाणक बनाने चाहिये । बलाणक पांच प्रकारके कहे गये हैं। १ वामन, २ विमान ( उत्तुङ्ग ), ३ हHशाल, वितान बनानेकी प्रथा दो सो तीनसो सालसे कम होती जाती है । निम्नः नीचे वितान उसके उपर संवरणा होती है। संवरणा भी कम होती है। उस "स्थान पर संन्यासीका मस्तक जैसा सीधा सादा गोल गुम्बज होने लगा है । वितानके तीनों प्रमुख प्रकारकी आकृति एवं फोटा अिस ग्रंथमे दिया हुआ है सो देखनेसे स्पष्ट समझमें आ जायेगा । ३१ बलाणकके स्वरुप अन्य ग्रंथोमें थोडे फेरफार के साथ दिये हुए हैं। देव प्रासादके आगे और जगती में समाविष्ट हुए मंडपके लिये “वामन " दुर्ग, एवं राजभवन के आगे विमान, प्रजाजनके भवनके आगे डेहल "हर्यशाल," जलाश्रयके
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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