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* प्रासादमञ्जरी - पट्टिका (मर्कटि) पर भी कलश बनानो पट्टिका (मर्कटि) के नीचे घंटिकाओ लटकती रखना । १०२
२५ ध्वजादंडकी लंबाइ समान पताका ध्वजा लंबी रखनी । और पताका-ध्वजाको लंबाई आठवे भाग ३ चौडी पताका चौडी रखनी (यह पताका तीन या पांच शिखाग्र वाली बनाने के लिये विधान है) १०३
तैयार किया हुआ शिस्त्रर अधिक समय तक ध्वजा हीन नहीं दिखना चाहिये । ऐसे ध्वज हीन मंदिरोमें असुर लोग निवास करने की इच्छा करते हैं। (अर्थात् देव प्रतिष्ठा तुरन्त करनी चाहिये) १०४
अथ प्रासादः---वैराज्यादि प्रासाद चोरस चार द्वारवाले और उनके आगे चोकी (चतुष्किका) का निर्माण करना । वैराज्यादि दूसरे प्रासाद के चार भाग करके उनमें से एक एक भागकी रेखा-कर्ण और सारा भद्र दो भागका चौडा और अर्ध भागका भद्रका निर्गम निकाला रखना भद्र मुख भद्र युक्त करना । कर्ण पर एक एक शृङ्ग और भद्र पर दो दो उरुशृङ्ग चढाने से वह “ नंदन" नामका वैराज्यादि दूसरा प्रासाद जानना । १०५ सांधार जातिके भ्रम युक्त प्रासाद में दश, नौ और आठ
. भागकी भ्रम की भित्ति दीवारकी मोटाईका प्रमाण जानना । १०६ । MAN
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२५ ध्वजा पताका में देवका वाहन अथवा आयुधका चिन्ह करने की प्रथा उत्तर भारतमें है । अपितु कलश अथवा ध्वजादंडके उपर भी ऐसे आयुधका चिन्ह करते हैं । शिवका प्रासाद हो तो डमरु । देवीशक्तिके प्रासाद हो तो त्रिशूल । विष्णुके प्रासाद हो तो चक्रका चिन्ह और रामचंद्रजीके प्रासादकी ध्वजा पर हनूमान की आकृति करते हैं।
पताका-ध्वजाकी आकृतिके बारे में क्रियाकांडी ब्राह्मण विवाद करते है कि ध्वजा त्रिकोण होनी चाहिये । इस विषयके बारेमें उन विद्वानोके साथ चर्चा की है। यज्ञादि कर्मका ग्रंथ बताके ब्राह्मण विद्वान प्रमाण बताते हैं, परंतु ये प्रमाण यज्ञ मंडपकी प्रासंगिक ध्वजाके वर्णनमें है । कोइ स्थाइ कार्य या प्रासादले विषयका ध्वजा त्रिकोण करनेका विधान अभी तक मैनें नहीं देखा । अविधिसर के छोटा शिवालय ओर हनुमानजी या अन्य मंदिरोमें कभी त्रिकोण ध्वजा अविधिसरकी