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________________ * Prasad Manjari * लम्बा करना । उसमें से दशवाँ भाग हीन करने से मध्यमान होता है ओर पांचवा भाग हीन करने से कनिष्ठ ध्वजदंडका जानना । २३ दंडका पृथुमान (एक गज हस्त) के प्रासादके लिये पौन अंगुलका ध्वजदंड मोढा बनाना । दो से पचास हाथ सकके प्रासादके लिये प्रत्येक हाथ पर आधे आधे अंगुलकी वृद्धि करते जानर । ध्वजदंड गोल (या अष्टांश बनाना ) ध्वजादंडके सम (बेकी २.४, ६.) कंकणी-ग्रंथी ओर२४ गाला पर्व विषम (एकी १. ३. ५. करना ध्वजादंड के काष्ठ सीसम, बांस, खेर महुआ, चंदन अथवा अगर तगर का ऐसा बनाना चाहिये। काष्टमें छिद्र तुट फाट ग्रंथी (गांठ) आदि दोष नहीं किन्तु अच्छा काष्ठका सुशोभित ध्वजदंड बनाना । ९९ से १०१ ।। वजादंडकी उपरकी पट्टिका (पाढली मर्कटी) दंडकी लंबाईसे छट्ठा भाग की लंबी करनी । लंबाइसे अर्ध चौडी बनाना । और चोडाइके तीसरे भाग पृथु मोटी बनाना चाहिये । पट्टिाके फिरती चारों ओर कंगूरी बनाना और नीचे अर्व चंद्राकृतिकी आकृति (शंखोद्वारजेसी) करनी । ६जदंडके उपर मस्तके कलश और २३ ध्वजदंडके पृथक पृथक मान दीपार्णव अंथमें दिये हुए हैं । (१) प्रासादकी जंघा-कटि विस्तार मानका दंड "विजय" (२) चोकीके पदके दो स्तंभके विस्तारके समान दंड “शक्तिरुप” (३) गर्भगृहके विस्तार के समान दंड “सुप्रभ" (४) प्रासाद कर्णे विस्तार के समान दंडका “जयवह" और शिखरके पाबचे-मूलकर्ण के विस्तार के समान दंडका " विश्वरुप” नाम विश्वकर्माने कहा है । यह पंचविध प्रमाण ध्वजदंडके दीर्घ नाम सहित कहा । क्षीराणवमें कहा है कि शिखरके कलश से नीचे खुरा तककी उंचाईके तीसरे भागके ध्वजदंड समान लंबा जेष्ठमानका छटा प्रमाग कहा है । सातवा मानप्रमाण पृथक् कहा है। एक हाथसे सात हाथ तक के प्रासादके लिये कोण रेखा विस्तार बराबर ध्वजदंड लंबा करना । आठसे पचिश हाथ तक के पासाद का ध्वजदंड गर्भगृहके विस्तारमानः और छब्बीशसे पचास हाथके प्रासाद के लिये शिखरके पायचा मूल रेखाके मानसे ध्वजदंड लंबा रखनेका विधान है। २४ ध्वजादंड में सामान्यतया सम कंकणी-ग्रंथी और विषम पर्व-गाला रखनेका विधान है। किन्तु शिव एवं शक्तिके प्रासादके लिये उससे विपरित करनेका विधान “ क्षीरार्णव' ग्रंथमें है । महारज्ञ याग के उत्सव पर ध्वजा रोपण करनेका शास्त्र विधान है । एक चयुतरे पर ध्वजदंड पंदरा विश हाथका ऊँचा खडा करते हैं।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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