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________________ 62 * प्रासादमअरी * बांधणे (साडापांचसे) छ भाग-सामान्यतया चौडा रखना चाहिये । शिखर मूलरेखा-पायचा के विस्तारसे सवाया सवागुने शिखरका उदय स्कंधे रखना । (पायचा विस्तारसे चारगुना सूत्र सवागुने शिखरका रखकर घृत खीचनेसे अविकसित कमल के समान शिखरकी सुंदर आकृति बन जाती है) ८५ रेखाके उदयमें अष्ट भाग करना एवं स्कंधे (बाधणे) सातभाग करके त्रासी उभी रेखा बनाके चिह्न करना (८६ ८७ अस्पष्ट अपूर्ण) CARRIE । HALISRO विस्तार २८भाग आमलसारा KOHARTITCH IMPURAUTIKHITI भाग/ ७ Prit ता Kr A-शिस्त्रर स्कंधे भागन शिखरका कंध विसार भाग६-अमलसाराविकारभागः विस्तार पांचसे छ भाग के बीचका प्रमाण रखनेका विधान अन्य ग्रंथोमें वर्णित हैः किंतु साढे पांच भाग रखने से अति सुंदर दिखाता हे सवागुने उदयवाले शिखरके लिये चारगुना सूत्र रखकर वृत खींचनेसे रेखा होती है डयोढे शिखरके लिये पांच गुना वृत सूत्र खींचना । और 13 ऊदके शिखर जितना मूलरेखा-पायचे हो उससे साडा चार गुना वृत सूत्र खींचकर कला रेखा होती है। इससे शिस्त्ररकी नमन रेखा बहुत सुन्दर लगती है और स्कंध के चित्र बराबर मिलते रहते है।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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