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प्रासादमञ्जरी *
अर्धचंद्र - शंखोद्वार-द्वारकी चौडाईके समान लंबा और उससे आधा निकलता हुआ बनाना खुराका थरके मथालेके बराबर अर्धचंद्रका मथाला समसूत्र में रखना ! रङ्गमंडप ओर चोकका भूमितल पीठके मथाले के समान रखना ( गर्भगृहका भूमितल उदुम्बरके कर्णपीठके समसूत्र रखना । ७८
अथ कौली प्रमाण - १५ प्रासाद जितना रखाये हो उनके दशभाग करके उसमें से दो-तीन-चार या गर्भगृह के पदके समान अथवा पदसे आधा तृतीय अथवा चौथे भागके बराबर निकलती हुई कौली (शलिलान्तर कवली) का प्रमाण जानना । कौल पर शिखरको शुकनाश रखा जाता है । ७९
अथ शिखर- प्रासाद के छज्जे के ऊपर प्रहार ( पाल ) का स्वस्थर बनाकर उस पर शृङ्ग चढाने चाहिये, शृङ्ग पर शृङ्ग चढाने में नीचेके शृङ्गके आवे भाग से
कन्द
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1.3.
कुंभे से कुंभी नीची हुई देखने में आती है यह देखते हुए तो इस प्रकारके वाद-विवाद में शिल्पी बंधुओं को न पडकर जो अपने मतके अनुसार वे करें, उसमें हमें कोई दोष दिखता नहीं है क्योंकि हमारा आशय किसीको अप्रमाणिक कनेका नहीं है ।
१५ शिखर युक्त प्रासादके लिये कौली परम आवश्यक हेतु शास्त्रकारों ने कहा है. मंडप और गर्भगृह के बीचका अंतर कौली - शलिलान्तरके लिये रखा है । इस अंतरको रखनेकी आवश्यकता है. इसलिये शास्त्रों में इसे शलिलान्तर कहा है । शिखरके तीन पांच उपाङ्ग होते हैं. इस लिये आगे कौली छोडने का विधान है । प्रासाद के उपाङ्गोका निर्गमके हेतुसे बुद्धिमान पूर्वाचार्यांने कौली
बनानेका विधान किया है ।
कोकिला बनानेका विधान शास्त्रकारोंने कहा है: कोकिला अर्थात् प्रासाद पुत्र रेखा - कर्शा समान कोलीके वामदक्षिण भाग में करना.