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* Prasad Manjari बाहर मंडोवर और स्तंभके छोडके थरका समन्वय निरधार प्रासादमेंः कुभे के बराबर कुम्भी-स्तंभ एवं उद्गम दाढीया भरणी एवं भरणा; महाकेवाल एवं शिरा
और पाट एवं छज्जा का थर एक सूत्रमें रखना; पाटके छज्जाका तल उके निम्न के तलके बराबर रखना.१३ ६८-६९.
देवालयके गर्भगृहकी चोडाईसे (सामान्य रीतसे) सवाया अथवा डयोढी उचाई रखनी । गर्मगृहकी उंचाई पाटके तल तकके आठ भाग करनी, जिनमें से एक भाग कुंभी; साढे पांच भागका स्तंभः आधे भागका भरणा. एवं एक भागका शरा-इन आठ भाग पर देढ भागका पाट और- पाटके ऊपर अष्टांश, षोडशांश और गोल थरका निर्माण कर करोटक (कलाडिया गुम्बज) बनाना ७०-७१
...- -.... समस्त उदय-
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अथ द्वारमान-एक कुम्भी
हाथके प्रासादके लिये सोलह स्तभ ५॥
अंगुलका द्वार उचाईमें भरमा ॥
रखना. इसी प्रकार चार सरा
१॥ पाट
हाथ तक सोलह सोलह स अंगुलकी वृद्धि करनी,
पांच हाथसे आठ हाथ तकके प्रासादके लिये तीन तीन अंगुलकी वृद्धि करनी, नौसे पचास हाथ तकके प्रासादके लिये प्रत्येक हाथ (गज) पर दो दो अंगुलकी वृद्धि करनी. द्वारकी ऊंचाईके आये हुए मानसे आधी चौडाई द्वारकी रखनीः इसमें सोलहवां भाग चौडाईमें बढ़ानेसे गर्भगृह स्थम प्रमाण वह शोभा जनक होता है. (यह नागरादि द्वारमान कहा; अन्य जातिके प्रासादों का द्वारमान अल्प होता है।) ७२-७३ । नलाग कहा जाता है : ऐसे नलाङ्ग गर्भगृहसे यम चुल्ली नामका वेध उत्पन्न होता है।
१३ यहां निरंधार प्रासादके लिये ! स्तंभका छोड और मंडोवरका थरका समसूत्र कहा है सांधार प्रसाद में कु भीकु भी उद्गम दोढीया एवं पाट समसूत्र रखनेको कहा है।
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