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________________ 49 * Prasad Manjari * JO __ अथमित्तिमानप्रासाद की दीवारके ओसार (मोटाई) पृथक् पृथक् वास्तु द्रव्य के अनुसार प्रमाण कहे है। प्रासाद के बाहर रेखा कर्ण हो उनके चतुर्थांश भागकी मोटाई दीवार ईंट के प्रसादके लिये रखनी, पाषाण के प्रासाद के लिये पांचवें या साढे पांच या छटे भाग की दीवाल मोटी रखनीः काष्ठ के प्रसाद सातवें भाग और सांधार प्रसाद के लिये आठवें मुनि-तापस भागः धातु एवं रत्नके प्रासाद के लिये १० दशवे भाग दीवारकी चौडाई रखनी; यह मूलनासिक के कुंभा से दीवारकी चौडाई का प्रमाण जानना.११ ६६-६७. ११ वृक्षार्णव-महानथमें भ्रमवाला सांधार अव निरंधार प्रासादको मित्तिमान युग्मरुप दशमांशे यदा भित्ति-दिशांते हि मध्यतः । त्रिविषं मितिमानं च ज्येष्टमध्यमकन्यसम् ।। १५१॥ मध्यस्तूपे प्रदातव्या भित्तिः स्यात् षोडशाधिका। पंचमांश निरंधारे मित्तिः प्रासादशैलजे ॥१५२।। वृक्षार्ण व. अ० १६७।। भ्रमवाला सांधार प्रासादका भित्तिमाग १ दशवाँ २ अग्यारहवाँ ३ बारहवाँ भाग का रखना ये ज्येष्ठ मध्यम एवं कनिष्ठ एसे त्रिविध मान भित्तिका जानना. भ्रम छोडके मध्यके स्तूपकी भित्ति सोलहवाँ भाग वृद्धि करके बनानीः विना भ्रमके निरंधार प्रासादकी प्राषाणक भित्तिका मान पांचवे या छठे भाग से रखना. ७
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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