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________________ शास्त्रं N ___ भाषा टीका-वहाँ पर जो मणि-कमल के पत्ते के समान है तथा श्वेत रेखाओंसे अत्यन्त प्रकाशमान है। मानतुग उस मणिका नाम " लक्ष्मीतिलक" है, वह मणिनिधिके लाभको दिखलाती है ॥४७॥ અર્થ:-કમળ પત્રસમાન કાંતવાળે, ઘેલી રેખાઓથી પ્રકાશમાન હોય તે મણિ “લક્ષમી તિલક નામ છે એમ જાણવું. આમણિનિધિ सासमतावे. ॥४७॥ मूलम्-पक्वजम्बूप्रतीकाशः, सर्ववर्णैः स विन्दुकः ॥ सर्वलाभकरः सौम्यः, स च लक्ष्मीपतिर्मणिः ॥४८॥ टीका-हदानी लक्ष्मीपतिनामकस्य मलक्षणम्प्रभावश्चाह पक्केत्यादिना-तत्रयोमणिः पक्कजम्बूमती, काशः पक्कजम्बूफलतुल्यः, सर्ववर्णैः सर्वैः शुक्लादिवर्णैः सविन्दुको विन्दुभिः सहितस्तथा सौम्योदर्शनीयोऽस्ति, शुभाकृतिर्विद्यत इतिहृदयम्, च तथा समणिः लक्ष्मीपतिरुच्यते, अयं मणिः सर्वलाभकरः सर्वलाभप्रदोऽस्तिलानर्जलपानेन भक्त्या पूजनेन चेतिबोध्यम् ॥४८॥ भाषा टीका-वहाँ पर जो मणि पके हुए जामुन फलके समान है, शुक्लआदि सब वर्गों के द्वारा विन्दु ओंके सहित है तथा सौम्य (सुन्दर आकारवाली) है उस मणिका नाम “लक्ष्मीपति" है, यह मणि सव मालाभोंको देती हे॥४८॥ અથ–પાકેલ જાંબુના ફલ સમાન શોભતે, બધા રંગનાબંદુઓવાળ, લક્ષ્મીપતિ’ નામને શ્રેષ્ઠ મણ જાણ તે સર્વલાભ આપનાર છે. ૪૮૦ || १निधिके लाभ को देती है ॥२ बहुवीही स्वार्थेकः प्रत्ययः ॥ ३ चः समुच्चये ॥ ४ " उसका खान जल पीनेसे तथा भक्तिपूर्वक उसकी पूजा करने " इस वाक्यका अध्वाहार करना चाहिये ।।
SR No.008422
Book TitleMantungashastram
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year
Total Pages56
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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