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________________ मानतुङ्ग शास्त्रं स च मणिनिःशेषरिपुमर्दनः सर्वशत्रुनाशकोऽस्ति, तत्स्नानजलपानेन भक्त्या तत्पुजया चसवानपि शत्रून् विनाशतीति तात्पर्यम् ॥ ४६॥ ___भाषा टीका-वहाँ पर जो मणि-सर्वदा सब प्रकारके शुक्ल आदि वर्णोको रखती है तथा अनेक रेखाओंसे अत्यन्त चमकतीरहती है, वह मणि विडालके नेत्र के समान है तथा वह मणि सय शत्रुओं का नाश करती है॥४६॥ અર્થ-બધા રંગને ધારણ કરનાર, અને નિરંતર ( સડસડ) જાત જાતની રેખાઓથી રદીપ્યમાન અને મીંદડાના નેલ ( આંખે) જેવા चिन्नापानावरसभान (अर्थातभशिभाभीजानी मांगे। समान Assir चिन्ह साहाय) aभल 'बिडाल नेत्र मणि'BACM भडिपाय छे. भलि सभाशमानेना। ४३ 2.॥४६॥ मूलम्-पद्मपत्रनिभः स्वच्छ:, शुभ्ररेखासुभासुरः ॥ लक्ष्मीतिलक नामायं, निधिलाभनिदर्शकः ॥४७॥2 टीका-इदानी लक्ष्मीतिलकनाम्मोमणेः समभावं लक्षणमाह पद्मेत्यादिना-तत्रयोमाणः पद्मपत्रनिभः कमलपत्रतुल्या, खच्छ उज्वल तथाशुभ्ररेखासुभासुरः शुभ्रामिः शुक्लाभि रेखाभिः सुभासुरोऽतिशयेन प्रकाशमानोऽस्ति, अर्यमणिलक्ष्मीतिलकनामाऽस्ति, अयश्चनिधिलाभ निदर्शकः निधिप्राप्तिसूचकोऽस्ति, तत्स्नान जलपानेन भक्त्या तत्पूजनेनेति बोध्यम् ॥४७॥ १ तात्पर्य यह है पिडालनेत्रके समान होनेसे उसका नामभीबिडालनेत्र" है ॥२" उसका स्नान जल पीनेसे तथा भक्तिपूर्वक 5|| उसकी पूजा करनेसे" यह वाक्यशेष जानना चाहिये। LAA
SR No.008422
Book TitleMantungashastram
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year
Total Pages56
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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