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देव स्तुति और ग्रंथ संपादक परिचय गणाधिपं नमस्कृत्य देवी सरस्वती तथा ब्रह्मा विष्णु महेशादि सूर्य दिनकरं सदा ॥१॥ शिल्पशास्त्र प्रकत्तरा विश्वकर्मा महामुनिम् ।
मनसा वचसा नत्वा ग्रन्थारम्भं करोमहम् ॥२॥ गणोंके अधिपति श्री गणेश, सरस्वती ब्रह्मा, विष्णु महेश और सूर्यको नमस्कार करके शिल्पशास्त्रोको उत्कृष्ठ करनेवाले महामुनि श्री विश्वकर्माको मन वचनसे वंदन करके में प्रभाशङ्कर इस अंथ पर सुप्रभा नाम्नी भाषा टीकाको प्रारम्भ करता हुँ।
वंशेस्मिन् रामजी शिल्पि ख्यातोऽय वास्तुकर्मणि । तसूमिन्नैवान्वये जातः प्रभाशङ्कर पञ्चमः ॥३॥ जगत् विख्यात विश्वकर्मा नारद संवाद रुप । क्षीराव ग्रंथ नामाऽयं प्राणकृत शिवः ।।
सुप्रभा नाम्नी टीकायां ग्रंथेऽस्मिन हि करोति सः ॥॥ भारद्वाज गोत्रमें श्री रामजोभा जैसे वास्तुकर्ममें विख्यात स्थयति पूर्वकालमें हो गये इसी कुलमें श्री ओघडभाइके कनिष्ठ पुत्र प्रभाशङ्कर स्थपति पांचधी पीढीमें हुए। जगत विख्यात विश्वकर्मा और नारदजीका संवाद रूप क्षीरार्णव नामक शिल्पशास्त्र पर सुप्रभा नाम्नी भाषा टीका ऐसे विख्यात कुलके स्थपति श्री प्रभाशङ्करने लिखी है।
॥ ग्रन्थ संपादकको अभिनन्दन पत्रिका ।। बादि देव महादेव कृपापात्रो महातनुः । ओघडजी महाप्राज्ञ शिल्पशास्त्र विशारदः ॥५॥ कैलासस्य महामेरो जीर्णोद्धार कारकः । प्रभाशङ्कर नामायं मान्य केषां न कारक ? ॥६॥ सत्यं सत्यं पुनः सत्य सत्यधर्म प्रवर्तकः । वृक्षार्णव शिव प्रोक्ते क्षीरार्णव यतनो हरिः ॥७॥ ग्रन्थानां शिल्पशास्त्रस्य पुनरुद्धार कारकः ।
आदि देव नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं विशारद ॥८॥ आदिदेव श्री महेशको कृपापात्र महाप्राज्ञ ऐसे श्री ओघडभाइके सूत महाप्राज्ञ शिल्पशास्त्र विशारद श्री प्रभाशंकरभाई सोमनाथजी महामेरु कैलासके जीर्णोद्धार कारक हैं। श्री प्रभाशङ्करजी संसारमें कीसके मान्य नहीं है। अपि तु सबके है । यह सत्य है और बारबार सत्य है कि शिवजी द्वारा रचित वृक्षापीव और हरि रचित "क्षीरार्णव" सत्यधर्मके प्रवर्तक है। श्री प्रभाशंकरभाई शिल्पशास्त्रके ग्रन्थोके पुनरोद्धारक है। हे ! आदि देव! आपको नमस्कार हो और हे! शिल्प विशारद ! आपको भी नमस्कार है।
शुभेच्छक स्नेहाधिन मनसुखलालजी सोमपुरा ।