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चतुर्मुख प्रासादका शिखर में चारों ओर सुंदर शुकनास दो तीन भूमि पर करना एक दो असे बार भूमि तक जंघाका क्रमयोगसे करना ।
३१८ गर्भगृहका अर्धमें षडांश ज्येष्ट, सातमेंशे मध्य-दशांश कनिष्ठमान? चतुर्मुख प्रासादके त्रयखंडमें एक खंड भ्रमकामंडपो त्रण खंडपदका या क्वचित नीकलता करना द
मंडपके वीच एक पदका अंतर रखना मंडपके द्वी भूमिमें तीन और वेदिका करना उससे आगे रंगमंडप डेढ भूमि उदय करना आगे पांच पदका बलाणक मंडप करना-उसके नाली मंडपना अग्र भागमें द्वयभूमिमें वेदिका करना एसे चारों ओर करना । ३१८-३१९ निर्गमवाला नालिभंडपके भद्रमें तीन ओर तीन द्वार करना । चातुर्मुख प्रासादकी प्रदक्षणामें ९६ देवकुलीका चार मूल और आठ महाधर-मीलके एकत्र १०८ जीनायतन हुमे ।। दुसरा प्रकार नालि मंडप छोडकर मेघनाथ मंडप आगे एक पद छोडके दुसरा मंडप और उससे आगे एक पद छोडके तीसरा सभ्रम मंडप बनाना उसमें समवसरणकी रचना करनाउसमें मूलनायकसे छोटी प्रतिमाको पधराना । मंडपका अंतर सुधीमें भूमियुक्त मंडप करना महाधर प्रासादके सन्मुख समवसरणकी रचना करना एसी चारो ओर बुद्धिमान शिल्पीसे करना मंडपोकी चारो ओर १०८ जीनायतन दुसरा महाधरके मध्य समवसरण ऐसो दो महाधरके बीच समवसरण ते मान युक्तिसे दोष रहित करना प्रदक्षणाकी पीछली पंक्तिमें महाधरकी दुसरी पंक्ति करना एसे जीनायतनका भ्रममें १०८की संख्या करना । आळेखन-चातुर्भूख चंदशाल प्रासादके शिखर
२८१ चंदशाल प्रा. आगे चारो और ९६४९६ स्तंभका भंडप तलदर्शन २८७ मानतुंग प्रा० आगे २८ विभागके १०४ स्तंभोका मंडपका तलदर्शन २८४ चातुर्मुख १३४४ = बावन जिनायतनका तलदर्शन २८७ किरणाउलि-पंदरा भाग. ९६ स्तंभका मंडप
२८८ भीट और ४७ उदयभाग महापीठ देवाङ्गना ३२ मेनकादिसे कामरुप आदि ३२+८=४० देवाङ्गनाओ स्वरुप ३०४--१३ द्वय छाद्य और चार जंधायुक्त मंडोवर १०८ देवकुलिकाका महा चातुर्मुख प्रासाद तलदर्शन
इति सविस्तर अनुक्रमणिका