________________
आमुख लेखक-माननीय श्री कनैयालाल मा० मुनशीजी उत्तर प्रदेशके भूतपूर्व-गवर्नर, गुजरातके ज्योतिर्धर,
गुजराती साहित्यमें अस्मिता प्रकटकर्ता भाइ श्री प्रभाशंकर-ओघडभाइ सोमपुरा अपने भारतके एक सुप्रसिद्ध स्थपति और शिल्पके ज्ञाता है । स्थापत्य और शिल्पके बडे जानकारी सोमपुरा परिवारके वंशानुवंश वारसामें मीली है । पुराण प्रथित भृगु ऋषिके भानजा और प्रभासके पुत्र देवोंका स्थपति श्रीविश्वकर्मा ज्यों भारतके आद्य विख्यात स्थपति थे । यह सोमपुरा परिवार के मूलपुरुष गिना जाता है । और सोमपुरा वंशके उत्पत्ति क्षेत्र प्रभासपाटन गिना जाता है। यह वंशके महापुरुषोने गुजरात, राजस्थान, मेवाडमें मंदिरोका शिल्प स्थापत्यके निर्माणमें महत्वपूर्ण हीस्सा दीया है।
भाइ श्री प्रभाशंकरजी सोमपुरा भगवान श्री सोमनाथके नवनिर्मित महाप्रासादके प्रमुख स्थपति है । स्थापत्यके शास्त्रीय और क्रियात्मक उभय ज्ञान श्री सोमपुराजीके खुनमें है । " दीपार्णव" नामक मंदिर स्थापत्यके स्पर्शित महाग्रंथ उन्होने गुजरातके चरण में अति कीया है । यह प्रकार के ग्रंथ गुजराती भाषामें प्रथम होनेसे श्री सोमपुराजीकी यह सिद्धि विरल है।
"क्षीरार्णव" के लेखन-संपादन और प्रकाशन द्वारा भाई श्री सोमपुराजी अपने भारतीय स्थापत्य साहित्यका एक अमुल्य ग्रंथ देश समक्ष प्रस्तुत करते है। यह ग्रंथ मूल स्वरुपमें बहुत विशाल होगा । परन्तु उनके सिर्फ बावीश प्रकरणो वर्तमानमें उपलब्ध हुये है। उन पर भाइ श्री सोमपुराजी मूलपाठ-सहित, हीन्दी-गुजराती में "सुप्रभा” नामक विवरणके साथ प्रकाशित कर रहा है । प्रचलित अभिप्रायानुसार यह ग्रंथ के प्रणेता श्री विश्वकर्मा था। कालक्रमें यह ग्रंथका कितते खंडो नष्ट हुआ है । परन्तु ज्यों बावीश प्रकरणो भाई श्री सोमपुराजी सविवरण प्रस्तुत करते है । इस परसे मालुम पडता है । की मूल ग्रंथ भव्य महाप्रासादो के निर्माणमें स्थापत्यके विविध दृष्टिकोणसे शास्त्रीय शैली प्रस्तुत करते है।
यह अद्भुत ग्रंथमें मूल श्लोकका हीन्दी-गुजराती विवरण है । और वास्तुशास्त्रके विशाल साहित्यमेंसे उल्लेखनीय अवतरण देवो अनेक सुंदर आकृतियो
और आलेखनो सहित भाइ श्री सोमपुराजी प्रतिपादत विषयको एसे विशनतासे पेश कीया है । की सामान्य वाचकगण भी सरलतासे समज सके । ___ "दीपार्णव ” और “ क्षीरार्णव " जेसे ग्रंथ भारतीय स्थापत्यके गौरव सम है । वास्तुशास्त्रके यह परंपरागत ज्ञानके विशाल वर्गके लिये ज्यों रीतसे विद्वान् श्री सोमपुराजीये सुलभ कर दिया है । इस लिये धन्यवादभारतीय विद्याभवन र
कनैयालाल मा० मुनशी अंबई-७ ता.२३-५.६७ ।