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विद्या कला और सरस्वती त्रिवेणीका उपासक और लक्ष्मी त्था सरस्वतीका जहाँ सदावास है ऐसे उद्योगपति श्रीमान् श्री श्रीगोपालजी नेवटियाजीका
पुरोवाचन 'क्षीरार्णव' के प्रकाशनके संबंधमें श्रद्धेय श्री प्रभाशंकरजीने मुझे भी कुछ लिखकर भेजनेके लिये अनुरोध किया है। मैं इस विषयका कोई ज्ञाता नहीं। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि श्री प्रभाशंकरजी प्राचीन भारतीय स्थापत्यके वेजोड़ विद्वान है । प्राचीन ग्रंथोंके अध्ययनके द्वारा ही नहीं, किन्तु भारतके प्रायः सभी प्राचीन मंदिरों और प्रासादोंको देखकर तथा अनेक निर्माण-कार्य-संपादन कर आपने जो ज्ञान प्राप्त किया है, यह अद्वितीय है।
बंबहके निकट कल्याणमें अभी पिछले वर्ष एक नया मंदिर निर्माण हुआ है, और इस कार्यका संपादन श्री प्रभाशंकरजीके द्वारा हुआ | इस विषयमें मेरा श्री प्रभाशंकरजी से निरंतर सम्पर्क रहा और इस बुद्धिमता-विवेकशिलता, सर्वाधिक निस्पृहता और निलोभताके साथ वह कार्य आपने संपादन किया उससे हम सब बहुत ही प्रभावित हुवे है ।
श्री प्रभाशंकरजीने प्राचीन स्थापत्य संबंधी अनेक ग्रंथोंका प्रकाशन किया है, और उसी श्रेणीका " क्षीरार्णव " भी एक है। इस ज्ञानको छपी हुई पुस्तकके रुपमें प्रस्तुत करनेका प्रशंसनीय कार्य श्री प्रभाशंकरजीने किया है । आजके प्रगतिशील जगतमें यह ज्ञान बहुत पीछे रह जाता है, फिर भी जब कभी इस झानके आधार पर निर्माण कार्य सम्पन्न होता है, तो उसके सजीव रुपमें इस प्राचीन स्थापत्यका महत्व प्रदर्शित होता है।
कतिपय वर्ष पहले मैं सोमनाथ मंदिरके दर्शनके लिये गया था और तभी से मेरा श्री सोमपुराजी से सम्पर्क बढता गया। सोमनाथ मंदिर के नव-निर्माण से लेकर आधुनिक जमाने में बहुतसे मंदिरोंके निर्माण इत्यादिका कार्य प्राचीन पद्धतिके अनुसार श्री सोमपुराजीने सम्पन्न किया है। ऐसा मालुम होता है कि इस प्राचीन कालका कोई एक पुरुष जीन्दा रह गया है। और अगले जमानेकी सेवा कर रहा है । उनके द्वारा प्रस्तुत स्थापत्य भले ही प्राचीन कहा जाय लेकिन आज वह कितना अपूर्व है। कितना बहुमूल्य है, वह देखनेवाले ही जान सकते है। मुझे इसका अनुभव हुआ है, इसलिये मुझे ऐसा लिखनेका अधिकार है।
में श्री सोमपुराजीके दीर्घायुकी कामना करता हूँ। और भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि उनके हाथोंसे ओर भी निर्माण कार्य सम्पन्न हो, उन्हे कीर्ति मिले और वे अजर अमर हो । रत्नाकर-बंबई ता. ३०-७-६७
-श्री गोपाल नेवटिया