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प्राचीन बौद्ध साहित्य ( ए. सी. कुमारस्वामी । अर्ली इन्डियन आर्किटेक्चर, ईस्टर्न आर्ट १९३० - १९३१ ) तथा जैन साहित्य ( डॉ. मोतीचन्द्र, आर्किटेक्चरल डेटा इन जैन केनोनिकल लिटरेचर, जर्नल एशियाटिक सोसायटी, वाल्युम २६ भाग २. १९५१ ) के आधार पर हम ईसापूर्व तथा ईसाकी आरंभिक सदियोंमें भारतीय वास्तु पर प्रकाश डाल सकते हैं । पर वास्तु संबंधी इन साहित्यिक उदाहरणों का सीधा सम्बन्ध या तो स्तूप, चैत्य, तोरण, वेदिकाकी बनावटोंसे अथवा प्रासाद और नगरकी रचना और नक्शोंसे है । इन उदाहरणोंका संबंध ईसा पूर्व दूसरी सदी से लेकर ईसाकी २-३ सदी तक के स्थापत्यसे है ।
वास्तुशास्त्र संबंधी जो परिभाषाएँ हमें इस युगमें मिलती है, उनका संबंध अधिकतर काष्ठ निर्मित स्थापत्यसे है । उस युगके जो चैय और विहार लेणों बच गई है। उनके नकशे भी काष्टसे बने आरामों तथा प्रासादोंसे लिए गए है । जिन देवमंदिरों की कल्पना मध्यकालमें हुई उनका इस युगमें पता न था । जो परिभाषाएँ अपने युगमें पूरी सार्थक थीं, बादमें चलकर जब वास्तुकलामें पत्थर और ईंटोंका प्रयोग होने लगा वह अपने अर्थ खोने लगीं, और गुप्त युगमें उन नई परिभाषाओं का जन्म हुआ जिनका तत्कालीन स्थापत्य से काफी संबंध था । इन परिभाषाओंका कालान्तर में संग्रह कर लिया गया होगा और इस तरह वास्तुशास्त्रका जन्म हुआ ।
अब प्रश्न उठता है कि क्या गुप्त युगके पहले भी लिखित रूपमें वास्तुशास्त्र था अथवा नहीं । तत्कालीन साहित्य में वास्तु संबंधी शब्दोंका खुलकर प्रयोग होनेसे तो ऐसा पता चलता है कि कुछ ग्रंथ जिनका अब पता नहीं है, ऐसे रहे होंगे जिनमें तत्कालीन वास्तु और उसके अवयवोंका वर्णन रहा होगा। ऐसा लगता है कि ३-४ सदीमें मंदिरोंकी बनावट में कुछ खोज बीन आरंभ हो गई थी । कमसे कम रायपसेणिय सूत्र से पता चलता है कि यान- विमानकी जो राजमहल अथवा देवमंदिरका ही प्रतीक था बनावट कुछ अधिक अलंकृत होती । इसके स्तंभों की सजावट लीलामयी शालभंजिका तथा ईहामृग, वृषभ, गंधर्व, मकर, विहग, व्यालक किन्नर, शरभ, कुंजर, वनलता तथा पद्मलता इत्यादि अभिप्रायोंका प्रयोग हुआ है । स्तम्भकी वनवेदिका पर विद्याधर युगल उत्कीर्ण होते थे, तथा उनकी सज्जा घंटियोंके जालसे होती थी । य न- विमान के तीर और सीढ़ियाँ होती थी, जिनके अवयवो यथाणेमा, स्तम्भ फलक; - सूची, संधि तथा अवलंबन बाहुका उल्लेख है । यान- विमानके तीन तरफ तोरण होते थे जिनकी ऊपरी शलाका, स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्ते, वर्धमान भद्रासन, कलश, मत्स्य और कलशसे सजा होती थी । तोरण स्तम्भ में निशीदिकाएँ होती