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________________ उपकृत कर रहे हैं। वडिलोंके ऋण स्वीकारको नोंध लेते मुझे आनन्द होता है। उनकी शुभाशिषों की कृपावर्षा हमेशां मेरेपर होती रहो ऐसी जगन्नियंता श्रीहरिके प्रति मेरी नम्र प्रार्थना है। सुप्रसिद्ध श्री सोमनाथ महाप्रासादका निर्माण मेरे हाथों में होनेसे उसके ट्रस्टके कामकाजके बारेमें राजप्रमुख श्री नामदार स्व. जामसाहब, सर दिग्विजय सिंहजी साहब और महाराज्ञी वर्तमान राजमाता नामदार गुलाबकुंवरबा साहेबाके परिचय में अबारनवार आनेका प्रसंग होता था। वे नामदार शिल्प के प्राचीन अमूल्य विद्या और साहित्य के प्रकाशन के लिये मुझे प्रोत्साहन देते थे और वर्तमान नामदार राजमाता साहेबा शिल्पका अभ्यासक्रम योजकर उसका क्रियात्मक ज्ञान मिले वैसी पाठशाला स्थापकर शिल्पी विद्यार्थी ओंको तैयार करनेके लिये मुझपर बहुत दबाव डाल रहे हैं। विद्यार्थीका सर्वप्रकार के आर्थिक बोझा उठाने की व्यवस्था भी कर रही हैं। यह उनका विद्या-कलाके प्रति प्रेम हैं । इस ग्रन्थप्रकाशनके लिये मैं उन नामदारोंका ऋणी हूँ। गुर्जर साहित्यकी अस्मिताके प्रकटकर्ता उत्तर प्रदेशके भूतपूर्व गवर्नर श्रीमान् कन्हैयालाल मा. मुन्शीजी जो हाल में सोमनाथ ट्रस्ट के प्रमुखश्री हैं। वे मेरे प्रति सदा सद्भाव बता रहे हैं, उन्होंने ग्रंथका पुरोवाचन लीखनेकी कृपा की है, इसलिये मैं उनका उपकृत हूँ । श्रीमान् श्रीगोपालजी, नेवटियाजी, शेठजी, शिल्प-स्थापत्य कला प्रति और हमारे परिवार प्रति हमेशां प्रेम और आदर रखते हैं। उन्हीसे श्री विरला परिवारके संसर्गमें आनेका प्रसंग रहता है। शिल्प-स्थापत्य कला साहित्य के प्रकाशन के लिये हमेशा प्रोत्साहन देते रहते हैं । प्रीन्स ऑफ वेल्स म्युझियमके डायरेक्टर, पुरातत्त्वके प्रखर विद्वान पुरातत्वज्ञ डॉ. मोतीचन्द्र भाईसाहबने समय और श्रम लेकर यह ग्रन्थकी भूमिका लिखी है इसलिये मैं उनका हृदयपूर्वक आभार मानता हूँ। क्षीरार्णव ग्रंथके संशोधन कार्थमें व्याकरण शुद्धिकी क्षतियाँ विद्वानों को मालूम पड़ेगी लेकिन वास्तुशास्त्र के ग्रंथों को भाषा ही वैसी निराली है। मूल संस्कृत में से प्राकृत, मागवी, पाली वगैरह भाषाएँ उत्पन्न हुई। इस तरह वास्तुशास्त्रके ग्रन्थोंकी भाषा ही वैसी है । एक विद्वानने संस्कृत पदमें कहा है, ज्योतिष तन्त्रशास्त्रे य विवादे वैद्यशिल्पके अर्थमात्रं तु गृहणीयान्नात्र शब्दं विचारयेत् ।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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