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________________ क्षीरार्णव अ. १०१ क्रमांक . . ઈતિશ્રી વિશ્વકર્મા વિરચિત કીરણ શ્રીનારદમુનિએ પૂછેલા કૂર્મશિલા નિવેશનને શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરાએ રચેલી ગુજ૨ ભાનુવાદની સુપ્રભા નામની ભાષા ટીકા સાથે એકસો એકમે અધ્યાય. ૧૦૧ _इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णव नारद मुनिके संवादरूप कूर्मशिला निवेशन शिल्प विशारद स्थपत्ति श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुरा रचित सुप्रभा नामकी भाषा टीकाका १०१ अध्याय ॥१०१॥ ( क्रमांक अ. ३) कुतूहल दो सांढ युद्ध वृषभ और हस्तियुद्ध एकमें दूसरे का मुख प्रदर्शित होता है। ભયની કૂર્મશિલા પર નાભિનું ભૂંગળું ઊભું કરવાનું નાગરાદિ શિલ્પમાં સ્પષ્ટ નથી. પરંતુ શિલ્પીઓ નાભિ ઊભી કરવાની પ્રથાને અનુસરે છે. દ્રવિડ ગ્રંથમાં આ વિષયમાં સ્પષ્ટ हेछ नामि लाली ४२वी. श्री विश्वकर्मा प्रकाश भने अग्नि पुराण भां नामि विशेने! સ્પષ્ટ ઉલ્લેખ છે. . (४) कूर्मशिला और अष्टशिलामें अंकित किये जानेवाले चिह्नोंके बारेमें अन्य ग्रंथों में स्वस्तिक आदि चिह्नों बनाने के लिये कहा है। उत्तर भारतके ग्रंथों में नौ शिला और पाँच शिलाओंको भी प्रमाण ठीक है। मध्यकी कूर्मशिलाके पर नाभिकी नाली खडी करने की प्रथाको अनुसरते हैं। द्राविड गंथोंमें इस विषयमें स्पष्ट कहते हैं कि नाभी खड़ी करना। श्री विश्वकर्मा प्रकाश और अमिपुराणमें भी नाभिके बारेमें स्पष्ट उल्लेख है। नागरादि शिल्प ग्रंथों में माली खड़ी करनेका स्पष्ट कहा नह है।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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