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समयसार-कलश
[ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
खंडान्वय सहित अर्थ:- "इति खलु पुद्गलस्य परिणामशक्ति: स्थिता'' [इति] इस प्रकार [खलु] निश्चयसे [पुद्गलस्य] मूर्त द्रव्यका [ परिणामशक्ति:] परिणमनस्वरूप स्वभाव [स्थिता] अनादिनिधन विद्यमान है। कैसा है ? "स्वभावभूता'' सहजरूप है। और कैसा है ? "अविघ्ना'' निर्विघ्नरूप है। "तस्यां स्थितायां सः आत्मन: यम् भावं करोति सः तस्य कर्ता भवेत्'' [तस्यां स्थितायां] उस परिणामशक्ति रहते हुए [ सः] पुद्गलद्रव्य [आत्मनः ] अपने अचेतन द्रव्यसंबंधी [ यम् भावं करोति] जिस परिणामको करता है [ सः] पुद्गलद्रव्य [तस्य कर्ता भवेत् ] उस परिणामका कर्ता होता है। भावार्थ इस प्रकार है -ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गलद्रव्य परिणमता है उस भावका कर्ता पुद्गलद्रव्य होता है।। १९-६४।।
[उपजाति] स्थितेति जीवस्य निरन्तराया स्वभावभूता परिणामशक्तिः। त्स्यां स्थितायां स करोति भावं यं स्वस्य तस्यैव भवेत् स कर्ता।। २०-६५।।
[हरिगीत आत्मा में है स्वभाविक परिणमन की शक्ति जब । और उसके परिणमन में है न कोई विध्न जब ।। क्यों न हो तब स्वयं कर्ता स्वयं के परिणमन का। अर सहज ही यह नियम जानो वस्तु के परिणमन का।।६५।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- "जीवस्य परिणामशक्ति: स्थिता इति'' [ जीवस्य] चेतनद्रव्यकी [परिणामशक्ति:] परिणमनरूप सामर्थ्य [ स्थिता] अनादिसे विद्यमान है। इति] ऐसा द्रव्यका सहज है। "स्वभावभूता'' जो शक्ति [स्वभावभूता] सहजरूप है। और कैसी है ? “निरन्तराया'' प्रवाहरूप है, एक समयमात्र खंड नहीं है। "तस्यां स्थितायां'' उस परिणामशक्ति होते हुए "स: स्वस्य यं भावं करोति'' [सः] जीववस्तु [स्वस्य] आपसम्बन्धी [यं भावं] जिस किसी शुद्धचेतनारूप अशुद्धचेतनारूप परिणामको [ करोति] करता है 'तस्य एव सः कर्ता भवेत्'' [ तस्य ] उस परिणामका [ एव] निश्चयसे [ सः] जीववस्तु [कर्ता] करणशील [ भवेत् ] होता है। भावार्थ इस प्रकार है- जीवद्रव्यकी अनादिनिधन परिणमनशक्ति है।। २०-६५।।
[आर्या] ज्ञानमय एव भावः कुतो भवेद् ज्ञानिनो न पुनरन्यः। अज्ञानमयः सर्वः कुतोऽयमज्ञानिनो नान्यः।। २१-६६ ।।
[रोला] ज्ञानी के सब भाव शुभाशुभ ज्ञानमयी हैं, अज्ञानी के वही भाव अज्ञानमयी है। ज्ञानी और अज्ञानी में यह अन्तर क्यों है, तथा शुभाशुभ भावों में भी अन्तर क्यों है।६६।।
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