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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द खंडान्वय सहित अर्थ:- "इति खलु पुद्गलस्य परिणामशक्ति: स्थिता'' [इति] इस प्रकार [खलु] निश्चयसे [पुद्गलस्य] मूर्त द्रव्यका [ परिणामशक्ति:] परिणमनस्वरूप स्वभाव [स्थिता] अनादिनिधन विद्यमान है। कैसा है ? "स्वभावभूता'' सहजरूप है। और कैसा है ? "अविघ्ना'' निर्विघ्नरूप है। "तस्यां स्थितायां सः आत्मन: यम् भावं करोति सः तस्य कर्ता भवेत्'' [तस्यां स्थितायां] उस परिणामशक्ति रहते हुए [ सः] पुद्गलद्रव्य [आत्मनः ] अपने अचेतन द्रव्यसंबंधी [ यम् भावं करोति] जिस परिणामको करता है [ सः] पुद्गलद्रव्य [तस्य कर्ता भवेत् ] उस परिणामका कर्ता होता है। भावार्थ इस प्रकार है -ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गलद्रव्य परिणमता है उस भावका कर्ता पुद्गलद्रव्य होता है।। १९-६४।। [उपजाति] स्थितेति जीवस्य निरन्तराया स्वभावभूता परिणामशक्तिः। त्स्यां स्थितायां स करोति भावं यं स्वस्य तस्यैव भवेत् स कर्ता।। २०-६५।। [हरिगीत आत्मा में है स्वभाविक परिणमन की शक्ति जब । और उसके परिणमन में है न कोई विध्न जब ।। क्यों न हो तब स्वयं कर्ता स्वयं के परिणमन का। अर सहज ही यह नियम जानो वस्तु के परिणमन का।।६५।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "जीवस्य परिणामशक्ति: स्थिता इति'' [ जीवस्य] चेतनद्रव्यकी [परिणामशक्ति:] परिणमनरूप सामर्थ्य [ स्थिता] अनादिसे विद्यमान है। इति] ऐसा द्रव्यका सहज है। "स्वभावभूता'' जो शक्ति [स्वभावभूता] सहजरूप है। और कैसी है ? “निरन्तराया'' प्रवाहरूप है, एक समयमात्र खंड नहीं है। "तस्यां स्थितायां'' उस परिणामशक्ति होते हुए "स: स्वस्य यं भावं करोति'' [सः] जीववस्तु [स्वस्य] आपसम्बन्धी [यं भावं] जिस किसी शुद्धचेतनारूप अशुद्धचेतनारूप परिणामको [ करोति] करता है 'तस्य एव सः कर्ता भवेत्'' [ तस्य ] उस परिणामका [ एव] निश्चयसे [ सः] जीववस्तु [कर्ता] करणशील [ भवेत् ] होता है। भावार्थ इस प्रकार है- जीवद्रव्यकी अनादिनिधन परिणमनशक्ति है।। २०-६५।। [आर्या] ज्ञानमय एव भावः कुतो भवेद् ज्ञानिनो न पुनरन्यः। अज्ञानमयः सर्वः कुतोऽयमज्ञानिनो नान्यः।। २१-६६ ।। [रोला] ज्ञानी के सब भाव शुभाशुभ ज्ञानमयी हैं, अज्ञानी के वही भाव अज्ञानमयी है। ज्ञानी और अज्ञानी में यह अन्तर क्यों है, तथा शुभाशुभ भावों में भी अन्तर क्यों है।६६।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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