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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] कर्ता-कर्म-अधिकार खंडान्वय सहित अर्थ:- यहाँ पर कोई प्रश्न करता है: “ज्ञानिनः ज्ञानमय एव भावः कुतः भवेत् पुनः न अन्यः' [ ज्ञानिनः ] सम्यग्दृष्टिके [ ज्ञानमय एव भावः] भेदविज्ञानस्वरूप परिणाम [ कुतो भवेत् ] किस कारणसे होता है [न पुनः अन्यः] अज्ञानरूप नहीं होता। भावार्थ इस प्रकार है - सम्यग्दृष्टि जीव कर्मके उदयको भोगनेपर विचित्र रागादिरूप परिणमता है सो ज्ञानभावका कर्ता है और [ उसके] ज्ञानभाव है, अज्ञानभाव नहीं है सो कैसे है ऐसा कोई बूझता है। "अयम् सर्व: अज्ञानिन: अज्ञानमयः कुतः न अन्यः" [अयम्] परिणाम [ सर्वः] सबका सब परिणमन [अज्ञानिनः ] मिथ्यादृष्टिके [ अज्ञानमयः] अशुद्ध चेतनारूप-बंधका कारण होता है। [ कुतः] कोई प्रश्न करता है ऐसा है सो कैसे है, [न अन्यः] ज्ञानजातिका कैसे नहीं होता ? भावार्थ इस प्रकार है -मिथ्यादृष्टिके जो कुछ परिणाम होता है वह बन्धका कारण है।। २१-६६ ।। __ [अनुष्टुप] ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः सर्वे भावा भवन्ति हि। सर्वेऽप्यज्ञाननिर्वृत्ता भवन्त्यज्ञानिनस्तु ते।। २२-६७।। [रोला] ज्ञानी के सब भाव ज्ञान से बने हुए हैं, अज्ञानी के सभी भाव अज्ञानमयी है। उपादान के ही समान कारज होते हैं,जौ बोनेपर जौ ही तो पैदा होते हैं।।६७।। खंडान्वय सहित अर्थ:- “हि ज्ञानिनः सर्वे भावाः ज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति'' [हि] निश्चयसे [ज्ञानिनः] सम्यग्दृष्टिके [ सर्वे भावा:] जितने परिणाम हैं [ज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति] ज्ञानस्वरूप होते हैं। भावार्थ इस प्रकार है – सम्यग्दृष्टिका द्रव्य शुद्धत्वरूप परिणमा है, इसलिए सम्यग्दृष्टिका जो कोई परिणाम होता है वह ज्ञानमय शुद्धत्व जातिरूप होता है, कर्मका अबंधक होता है। "तु ते सर्वे अपि अज्ञानिनः अज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति'' [ तु] यों भी है कि [ते] जितने परिणाम [ सर्वे अपि] शुभोपयोगरूप अथवा अशुभोपयोगरूप हैं वे सब [अज्ञानिन:] मिथ्यादृष्टिके [अज्ञाननिर्वृत्ताः] अशुद्धत्वसे नीपजे हैं, [भवन्ति] विद्यमान हैं। भावार्थ इस प्रकार है - सम्यग्दृष्टि जीवकी और मिथ्यादृष्टि जीवकी क्रिया तो एकसी है, क्रियासम्बन्धी विषय कषाय भी एकसी है; परन्तु द्रव्यका परिणमनभेद है। विवरण-सम्यग्दृष्टिका द्रव्य शुद्धत्वरूप परिणमा है, इसलिए जो कोई परिणाम बुद्धिपूर्वक अनुभवरूप है अथवा विचाररूप है अथवा व्रत- क्रियारूप है अथवा भोगाभिलाषरूप है अथवा चारित्रमोहके उदय क्रोध, मान, माया, लोभरूप है वह सभी परिणाम ज्ञानजातिमें घटता है, कारण कि जो कोई परिणाम है वह संवर-निर्जराका कारण है, ऐसा ही कोई द्रव्यपरिणमनका विशेष है। मिथ्यादृष्टिका द्रव्य अशुद्धरूप परिणमा है, इसलिए जो कोई मिथ्यादृष्टिका परिणाम अनुभवरूप तो होता ही नहीं। इसलिए सूत्र-सिद्धान्तके पाठरूप है अथवा व्रत-तपश्चरणरूप है अथवा दान, पूजा दया, शीलरूप है अथवा भोगाभिलाषरूप है अथवा क्रोध, मान, माया, लोभरूप है, ऐसा समस्त परिणाम अज्ञानजातिका है, क्योंकि बंधका कारण है, संवर-निर्जराका कारण नहीं है। द्रव्यका ऐसा ही परिणमनविशेष है।। २२-६७।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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