________________
Version 001: remember to check http://www.Atma Dharma.com for updates
कहान जैन शास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म-अधिकार
[ शार्दूलविक्रीडित]
अज्ञानात् मृगतृष्णिकां जलधिया धावन्ति पातुं मृगा अज्ञानात्तमसि द्रवन्ति भुजगाध्यासेन रज्जौ जनाः । अज्ञानाच्च विकल्पचक्रकरणाद्वातोत्तरङ्गाब्धिवत् शुद्धज्ञानमया अपि स्वयममी कर्त्रीभवंत्याकुलाः ।। १३-५८ ।।
[ हरिगीत ]
अज्ञान से ही भागते मृग रेत को जल मानकर । अज्ञान से ही डरे तम में रस्सी विषधर मानकर ॥ ज्ञानमय है जीव पर अज्ञान के कारण अहो । वतोद्वेलित उधदिवत कर्ता बने आकुलित हो । । ५८ । ।
५५
खंडान्वय सहित अर्थ:- अमी स्वयम् शुद्धज्ञानमयाः अपि अज्ञानात् आकुलाः कर्त्रीभवन्ति ' [अमी] सर्व संसारी मिथ्यादृष्टि जीव[ स्वयम् ] सहजसे [ शुद्धज्ञानमया: ] शुद्धस्वरूप है [ अपि ] तथापि [अज्ञानात्] मिथ्या दृष्टिसे [ आकुला : ] आकुलित होते हुए [ कर्त्रीभवन्ति ] बलात्कार ही कर्ता होते हैं। किस कारणसे ? " विकल्पचक्रकरणात् ' [ विकल्प ] अनेक रागादिके [ चक्र ] समूहके [करणात् ] करनेसे । किसके समान ? ' वातोत्तरङ्गाब्धिवत्' [ वात ] वायुसे [ उत्तरङ्ग ] डोलते-ऊछलते हुए [ अब्धिवत् ] समुद्रके समान । भावार्थ इस प्रकार है कि जैसे समुद्रका स्वरूप निश्चल है, वायुसे प्रेरित होकर उछलता है उछलनेका कर्ता भी होता है, वैसे ही जीवद्रव्य स्वरूपसे अकर्ता है। कर्मसंयोगसे विभावरूप परिणमता है, इसलिए विभावपनेका कर्ता भी होता है। परन्तु अज्ञानसे, स्वभाव तो नहीं। दृष्टान्त कहते हैं- मृगाः मृगतृष्णिकां अज्ञानात जलधिया पातुं धावन्ति'' [ मृगाः] जिस प्रकार हरिण [ मृगतृष्णिकां] मरीचिकाको [ अज्ञानात् ] मिथ्या भ्रान्तिके कारण [ जलधिया ] पानीकी बुद्धिसे [ पातुं धावन्ति ] पीनेके लिये दौड़ते हैं। जनाः रज्जौ तमसि अज्ञानात् भुजगाध्यासेन द्रवन्ति ' [ जना: ] जिस प्रकार मनुष्य जीव [ रज्जौ ] रस्सीमें [ तमसि ] अंधकार के होनेपर [ अज्ञानात् ] भ्रान्तिके कारण [ भुजगाध्यासेन ] सर्पकी बुद्धिसे [ द्रवन्ति ] डरते हैं ।। १३ – ५८ ।।
**
Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com