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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] कर्ता-कर्म-अधिकार ४७ [शार्दूलविक्रीडित] इत्येवं विरचय्य सम्प्रति परद्रव्यान्निवृत्तिं परां स्वं विज्ञानघनस्वभावमभयादास्तिघ्नवान: परम। अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात् क्लेशान्निवृत्तः स्वयं ज्ञानीभूत इतश्चकास्ति जगतः साक्षी पुराणः पुमान्।।३-४८।। [सवैय्या इकतीसा इस प्रकार जान भिन्नता विभाव भाव की, कर्तृत्व का अहं विलायमान होरहा। निज विज्ञानमयभाव गजा रूढ़ हो, निज भगवान शोभायमान हो रहा ।। जगत का साक्षी पुरुषपुराण यह, अपने स्वभाव में विकासमान हो रहा । अहो सद्ज्ञानवंत दृष्टिवंत यह पुमान , जग-मग ज्योतिमय प्रकाश मान हो रहा।।४८।। खंडान्वय सहित अर्थ:- “पुमान् स्वयं ज्ञानीभूतः इतः जगतः साक्षी चकास्ति'' [पुमान् ] जीवद्रव्य [स्वयं ज्ञानीभूतः ] अपने आप अपने शुद्ध स्वरूपके अनुभवनमें समर्थ हुआ; [ इतः] यहाँ से लेकर [जगतः साक्षी] सकल द्रव्यस्वरूपको जाननशील होकर [चकास्ति] शोभता है। भावार्थ इस प्रकार है कि यदा जीवको शुद्ध स्वरूपका अनुभव होता है तदा सकल पर द्रव्यरूप द्रव्यकर्मभावकर्म-नोकर्ममें उदासीनपना होता है। कैसा है जीवद्रव्य ? "पुराण:'" द्रव्यकी अपेक्षासे अनादिनिधन है। और कैसा है ? "क्लेशात् निवृत्तः'' [क्लेशात् ] दुःखसे [ निवृत्तः ] रहित है। कैसा है क्लेश ? ''अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात्'' [अज्ञान] जीव-कर्मके एकसंस्काररूप छूठे अनुभवसे [उत्थित ] उत्पन्न हुई है [कर्तृकर्मकलनात् ] जीव कर्ता और जीवकी करतूति ज्ञानावरणादि द्रव्यपिण्ड ऐसी विपरीत प्रतीति जिसको, ऐसा है। और कैसी है जीववस्तु ? ''इति एवं सम्प्रति परद्रव्यात् परां निवृत्तिं विरचय्य स्वं आस्तिघ्नुवानः'' [इति] इतने [ एवं] पूर्वोक्त प्रकारसे [ सम्प्रति] विद्यमान [ परद्रव्यात्] पर वस्तु जो द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म उससे [ निवृत्तिं] सर्वथा त्यागबुद्धि [परां] मूलसे [ विरचय्य] करके [ स्वं] शुद्धचिद्रूपको [आस्तिनुवानः ] आस्वादती हुई। कैसा है स्व ? ''विज्ञानघनस्वभावम्'' [विज्ञानघन] शुद्ध ज्ञानका समूह है [स्वभावम्] सर्वस्व जिसका ऐसा है। और कैसा है स्व ? 'परम्'' सदा शुद्धस्वरूप है। "अभयात्'' सात भयोंसे रहितरूपसे आस्वादती है।। ३-४८।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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