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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला ] साध्य-साधक-अधिकार [ शालिनी ] योऽयं भावो ज्ञानमात्रोऽहमस्मि ज्ञेयो ज्ञेयज्ञानमात्रः स नैव । ज्ञेयो ज्ञेयज्ञानकल्लोलवल्गन् ज्ञानज्ञेयज्ञातृमद्वस्तुमात्रः ।। ८-२७१।। [ रोला ] परज्ञेयों के ज्ञानमात्र मैं नहीं जिनेश्वर । मैं तो केवल ज्ञानमात्र हूँ निश्चित जानो।। ज्ञेयों के आकार ज्ञान की कल्लोलों से । परिणत ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयमय वस्तुमात्र हूँ ।। २७९ ।। २४५ "" खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि ज्ञेय - ज्ञायकसम्बन्धके ऊपर बहुत भ्रांति चलती है सो कोई ऐसा समझेगा कि जीववस्तु ज्ञायक, पुद्गलसे लेकर भिन्नरूप छ द्रव्य ज्ञेय हैं। सो ऐसा तो नहीं है। जैसा इस समय कहते हैं उस प्रकार है - ' ' अहम् अयं यः ज्ञानमात्रः भावः अस्मि '' [ अहम् ] मैं [ अयं य: ] जो कोई [ ज्ञानमात्र: भावः अस्मि ] चेतनासर्वस्व ऐसा वस्तुस्वरूप हूँ '' सः ज्ञेयः न एव " वह मैं ज्ञेयरूप हूँ परन्तु ऐसा ज्ञेयरूप नहीं हूँ। कैसा ज्ञेयरूप नहीं हूँ' ज्ञेयज्ञानमात्र: '' [ ज्ञेय ] अपने जीवसे भिन्न छह द्रव्योंके समूहका [ ज्ञानमात्रः ] जानपनामात्र। भावार्थ इस प्रकार है कि मैं ज्ञायक समस्त छह द्रव्य मेरे ज्ञेय ऐसा तो नहीं है। तो कैसा है ? ऐसा है— ‘‘ज्ञानज्ञेयज्ञातृमद्वस्तुमात्र: ज्ञेय: '' [ ज्ञान ] जानपनारूप शक्ति [ ज्ञेय] जानने योग्य शक्ति [ज्ञातृ] अनेक शक्ति विराजमान वस्तुमात्र ऐसे तीन भेद [ मद्वस्तुमात्र: ] मेरा स्वरूपमात्र है [ ज्ञेय: ] ऐसा ज्ञेयरूप हूँ। भावार्थ इस प्रकार है कि मैं अपने स्वरूपको वेद्य- वेदकरूपसे जानता हूँ, इसलिए मेरा नाम ज्ञान, यतः मैं आप द्वारा जानने योग्य हूँ, इसलिए मेरा नाम ज्ञेय, यतः ऐसी दो शक्तियोंसे लेकर अनन्त शक्तिरूप हूँ, इसलिए मेरा नाम ज्ञाता ऐसा नामभेद है, वस्तुभेद नहीं है। कैसा हूँ? ‘— ज्ञानज्ञेयकल्लोलवल्गन्'' [ ज्ञान ] जीव ज्ञायक है [कल्लोल ] वचनभेद उससे [ वल्गन् ] भेदको प्राप्त होता हूँ भेद है, वस्तुका भेद नहीं है।। ८-२७१।। । ज्ञेय ] जीव ज्ञेयरूप है ऐसा जो भावार्थ इस प्रकार है कि वचनका [ । Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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