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कहान जैन शास्त्रमाला]
स्याद्वाद-अधिकार
२३५
"प्रादुर्भावविराममुद्रित-वहज्ज्ञानांशनानात्मना निर्ज्ञानात्'' [ प्रादुर्भाव ] उत्पाद [ विराम] विनाशसे [ मुद्रित] संयुक्त [ वहत्] प्रवाहरूप जो [ ज्ञानांश ] ज्ञानगुणके अविभागप्रतिच्छेद उनके कारण हुए [नानात्मना] अनेक अवस्थाभेदके [ निर्ज्ञानात् ] जानपनेके कारण। ऐसा है एकान्तवादी, उसके प्रति स्याद्वादी प्रतिबोधता है- "तु स्याद्वादी जीवति'' [तु] जिस प्रकार एकान्तवादी कहता है उस प्रकार एकान्तपना नहीं है। [ स्याद्वादी] अनेकान्तवादी [ जीवति] वस्तुको साधने के लिए समर्थ है। कैसा है स्याद्वादी ? “चिद्वस्तु नित्योदितं परिमृशन्'' [चिद्वस्तु] ज्ञानमात्र जीववस्तुको [नित्योदितं] सर्वकाल शाश्वत ऐसा [ परिमृशन् ] प्रत्यक्षरूपसे आस्वादरूप अनुभवता हुआ। किस रूपसे ? “चिदात्मना'' ज्ञानस्वरूप है जीववस्तु उसरूपसे। और कैसा है स्याद्वादी ? "टोत्कीर्णघनस्वभावमहिमज्ञानं भवन्'' [ टङ्कोत्कीर्ण] सर्व काल एकरूप ऐसे [घनस्वभाव] अमिट लक्षण से है [ महिमा] प्रसिद्धि जिसकी ऐसी [ ज्ञानं ] जीववस्तुको [ भवन् ] आप अनुभवता हुआ।। १४-२६०।।
[शार्दूलविक्रीडित] टोत्कीर्णविशुद्धबोधविसराकारात्मतत्त्वाशया वांच्छत्युच्छलदच्छचित्परिणतेभिन्नं पशुः किञ्चन। ज्ञानं नित्यमनित्यतापरिगमेऽप्यासादयत्युज्ज्वलं स्याद्वादी तदनित्यतां परिमृशंश्चिद्वस्तुवृत्तिक्रमात्।। १५-२६१।।
[हरिगीत] है बोध जो टंकोत्कीर्ण विशुद्ध उसकी आश से । चिद्परिणति निर्मल उछलती से सतत् इन्कार कर।। अज्ञजन हों नष्ट किन्तु स्याद्वादी विज्ञजन । अनित्यता में व्याप्त होकर नित्य का अनुभव करें।।२६१ ।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि कोई मिथ्यादृष्टि एकान्तवादी ऐसा है जो वस्तुको द्रव्यरूप मानता है, पर्यायरूप नहीं मानता है, इस कारण समस्त ज्ञेयको जानता हुआ ज्ञेयाकार परिणमता है ज्ञान उसको अशुद्धपना मानता है एकान्तवादी, ज्ञानको पर्यायपना नहीं मानता है। उसका समाधान स्याद्वादी करता है कि ज्ञानवस्तुको द्रव्यरूपसे देखनेपर नित्य है, पर्यायरूपसे देखनेपर अनित्य है, इसलिए समस्त ज्ञेयको जानता है ज्ञान, जानता हुआ ज्ञेयकी आकृतिरूप ज्ञानकी पर्याय परिणमती है ऐसा ज्ञानका स्वभाव है, अशुद्धपना नहीं है। ऐसा कहते हैं - "पशुः उच्छलदच्छचित्परिणते: भिन्नं किञ्चन वाञ्छति'' [ पशुः] एकान्तवादी [उच्छलत्] ज्ञेयका ज्ञाता होकर पर्यायरूप परिणमता है उत्पादरूप तथा व्ययरूप ऐसी [अच्छ] अशुद्धपनासे रहित ऐसी जो [ चित्परिणतेः] ज्ञानगुणकी पर्याय उससे [ भिन्नं] ज्ञेयको जाननेरूप परिणतिके बिना वस्तुमात्र कूटस्थ होकर रहे
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