________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
२३४
समयसार-कलश
[ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
उसके प्रति समाधान करता है स्याद्वादी -"तु स्याद्वादी विशुद्ध एव लसति'' [ तु] जिस प्रकार मिथ्यादृष्टि एकान्तवादी मानता है उस प्रकार नहीं है, जिस प्रकार स्याद्वादी मानता है उस प्रकार है - [स्याद्वादी] अनेकान्तवादी जीव [ विशुद्धः एव लसति] मिथ्यात्वसे रहित होकर प्रवर्तता है। कैसा है स्याद्वादी ? 'स्वस्य स्वभाव भरात् आरूढ'' [स्वस्य स्वभावं] ज्ञानवस्तुकी जानपनामात्र शक्ति उसकी [भरात् आरूढ:] अति ही प्रगाढ़रूपसे प्रतीति करता है। और कैसा है ? "परभावभावविरहव्यालोकनिष्कम्पितः'' [ परभाव] समस्त ज्ञेयकी अनेक शक्तिकी आकृतिरूप परिणमा है ज्ञान, इस रूप [भाव] मानता है जो ज्ञानवस्तुका अस्तित्व, तद्रूप [विरह] विपरीत बुद्धिके त्यागसे हुई है [ व्यालोक ] सांची दृष्टि, उससे हुआ है [ निष्कम्पितः] साक्षात् अमिट अनुभव जिसको, ऐसा है स्याद्वादी।। १३-२५९ ।।
[शार्दूलविक्रीडित]
प्रादुर्भावविराममुद्रितवहज्ज्ञानांशनानात्मना निर्ज्ञानात्क्षणभङ्गसङ्गपतितः प्रायः पशुनश्यति। स्याद्वादी तु चिदात्मना परिमृशंश्चिद्वस्तु नित्योदितं टकोत्कीर्णघनस्वभावमहिमज्ञानं भवन् जीवति।।१४-२६०।।
[हरिगीत] उत्पाद-व्यय के रूप में बहते हुए परिणाम लख। क्षणभंग के पड़ संग निज का नाश करते अज्ञजन।। चैतन्यमय निज आतमा क्षणभंग है पर नित्य भी। यह जानकर जीवित रहें नित स्याद्वादी विज्ञजन।।२६०।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि कोई एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि ऐसा है जो वस्तुको पर्यायमात्र मानता है, द्रव्यरूप नहीं मानता है, इसलिए अखंड धाराप्रवाहरूप परिणमता है ज्ञान, उसका होता है प्रतिसमय उत्पाद-व्यय। इसलिए पर्यायका विनाश होनेपर जीवद्रव्यका विनाश मानता है। उसके प्रति स्याद्वादी ऐसा समाधान करता है कि पर्यायरूपसे देखनेपर जीववस्तु उपजती है विनष्ट होती है, द्रव्यरूपसे देखनेपर जीव सदा शाश्वत है। ऐसा कहते है- “पशुः नश्यति'' [पशुः] एकान्तवादी जीव [ नश्यति] शुद्ध जीववस्तुको साधनेसे भ्रष्ट है। कैसा है एकान्तवादी ? "प्रायः क्षणभङ्गसङ्गपतितः'' [प्रायः] एकान्तरूपसे [क्षणभङ्ग] प्रतिसमय होनेवाले पर्यायमें विनाशसे[ संगपतितः] उस पर्यायके साथ-साथ वस्तुका विनाश मानता है। किस कारणसे ?
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com