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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] सर्वविशुद्धज्ञान-अधिकार [ मन्दाक्रान्ता] रागद्वेषद्वयमुदयते तावदेतन्न यावत् ज्ञानं ज्ञानं भवति न पुनर्बाध्यतां याति बोध्यम्। ज्ञानं ज्ञानं भवतु तदिदं न्यक्कृताज्ञानभावं भावाभावौ भवति तिरयन् येन पूर्णस्वभावः ।। २५-२१७।। [रोला] तब तक राग-द्वेष होते हैं जब तक भाई, ज्ञान-ज्ञेयका भेद ज्ञानमें उदित नहीं हो।। ज्ञान-ज्ञेयका भेद समझकर राग-द्वेष को, मेट पूर्णतः पूर्ण ज्ञानमय तुम हो जावो।।२१७।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "एतत् रागद्वेषद्वयं तावत् उदयते'' [ एतत् ] विद्यमान [ राग] इष्टमें अभिलाष [ द्वेष ] अनिष्टमें उद्वेग ऐसे [द्वयम् ] दो जातिके अशुद्ध परिणाम [ तावत् उदयते] तब तक होते हैं "यावत् ज्ञानं ज्ञानं न भवति'' [ यावत् ] जब तक [ ज्ञानं] जीवद्रव्य [ ज्ञानं न भवति] अपने शुद्धस्वरूपके अनुभवरूप नहीं परिणमता है। भावार्थ इस प्रकार है कि जितने काल तक जीव मिथ्यादृष्टि है उतने काल तक राग-द्वेषरूप अशुद्ध परिणमन नहीं मिटता।] “पुनः बोध्यं बोध्यतां यावत् न याति'' [पुनः] तथा [ बोध्यं] ज्ञानावरणादि कर्म अथवा रागादि अशुद्ध परिणाम [ बोध्यतां यावत् न याति] ज्ञेयमात्र बुद्धिको नहीं प्राप्त होते हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि ज्ञानावरणादि कर्म सम्यग्दृष्टि जीवको जाननेके लिए हैं। कोई अपने कर्मका उदय कार्य जिस तिस प्रकार करनेके लिये समर्थ नहीं है। "तत् ज्ञानं ज्ञानं भवतु'' [तत्] तिस कारणसे [ज्ञानं] जीववस्तु [ज्ञानं भवतु] शुद्ध परिणतिरूप होकर शुद्धस्वरूपके अनुभवसमर्थ होओ। कैसा है शुद्ध ज्ञान ? ''न्यकृताज्ञानभावं" [न्यक्कृत] दूर किया है [अज्ञानभावं] मिथ्यात्वभावरूप परिणति जिसने ऐसा है। ऐसा होनेपर कार्यकी प्राप्ति कहते हैं-''येन पूर्णस्वभावः भवति'' [येन] जिस शुद्ध ज्ञानके द्वारा [ पूर्णस्वभावः भवति] जैसा द्रव्यका अनन्तचतुष्टयस्वरूप है वैसा प्रगट होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि मुक्तिपदकी प्राप्ति होती है। कैसा है पूर्ण स्वभाव ? ''भावाभावौ तिरयन्'' चतुर्गतिसम्बन्धी उत्पादव्ययको सर्वथा दूर करता हुआ जीवका स्वरूप प्रगट होता है।। २५–२१७।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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