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समयसार-कलश
[ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
है सो इसमें क्या अनुभवकी प्राप्ति बहुत है ? समाधान इस प्रकार है कि समस्त नयविकल्पोंके द्वारा शुद्धस्वरूपका अनुभव सर्वथा नहीं है। उसको [ स्वरूपको] मात्र जनानेके लिए ही शास्त्रमें बहुत नय-युक्तिसे दिखलाया है। तिस कारण ''नः इयम् एका अपि चिच्चिन्तामणिमालिका अभितः चकास्तु एव'' [न:] हमें [इयं] स्वसंवेदनप्रत्यक्ष [एका अपि] समस्त विकल्पोंसे रहित [चित्] शुद्ध चेतनारूप [ चिन्तामणि] अनंत शक्तिगर्भित [ मालिका] चेतनामात्र वस्तुकी [ अभितः चकास्तु एव] सर्वथा प्रकार प्राप्ति होओ। भावार्थ इस प्रकार है कि निर्विकल्पमात्रका अनुभव उपादेय है, अन्य विकल्प समस्त हेय हैं। दृष्टान्त ऐसा-''सूत्रे प्रोता इव'' जिस प्रकार कोई पुरुष मोतीकी मालाको पोना जानता है, माला गूंथता हुआ अनेक विकल्प करता है सो वे समस्त विकल्प झूठे हैं, विकल्पोंमें शोभा करनेकी शक्ति नहीं है। शोभा तो मोतीमात्र वस्तु है, उसमें है। इसलिए पहननेवाला पुरूष मोतीकी माला जानकर पहिनता है, गूंथनेके बहुत विकल्पजानकर नहीं पहिनता है । देखने वाला भी मोतीकी माला जानकर शोभा देखता है, गूंथनेके विकल्पोंको नहीं देखता है। उसी प्रकार शुद्ध चेतनामात्र सत्ता अनुभव करने योग्य है। उसमें घटते हैं जो अनेक विकल्प उन सबकी सत्ता अनुभव करने योग्य नहीं है।। १७-२०९ ।।
[ रथोद्धता] व्यावहारिकदृशैव केवलं कर्तृ कर्म च विभिन्नमिष्यते। निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते कर्तृ कर्म च सदैकमिष्यते।। १८-२१०।।
[दोहा] अरे मात्र व्यवहार से कर्मरु कर्ता भिन्न । निश्चयनय से देखिये दोनों सदा अभिन्न।।२१०।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- यहाँ कोई प्रश्न करता है कि ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गलपिण्डका कर्ता जीव है कि नहीं ? उत्तर इस प्रकार है कि कहनेको तो है, वस्तुस्वरूप विचारने पर कर्ता नहीं है। ऐसा कहते हैं- 'व्यावहारिकदृशा एव केवलं'' झूठा व्यवहारदृष्टिसे ही ''कर्तृ'' कर्ता 'च'' तथा 'कर्म'' किया गया कार्य “विभिन्नम् इष्यते'' भिन्न-भिन्न है। जीव ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मका कर्ता ऐसा कहनेके लिए सत्य है। कारण कि युक्ति ऐसी कि रागादि अशुद्ध परिणामोंको जीव करता है। रागादि अशुद्ध परिणामोंके होते समय ज्ञानावरणादिरूप पुद्गल द्रव्य परिणमता है इस कारण कहनेके लिए ऐसा है कि ज्ञानावरणादि कर्म जीवने किये। स्वरूपका विचार करनेपर ऐसा कहना झूठा है। कारण कि "यदि निश्चयेन चिन्त्यते''[ यदि] जो [ निश्चयेन] सच्ची व्यवहारदृष्टिसे [चिन्त्यते देखा जाय, क्या देखा जाय ? "वस्तु'' स्वद्रव्य परिणाम परद्रव्य परिणामरूप वस्तुका स्वरूप तो "सदा एव कर्तृ कर्म एकम्
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