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समयसार - कलश
[ मन्दाक्रान्ता ]
बन्धच्छेदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेतन्नित्योद्योतस्फुटितसहजावस्थमेकान्तशुद्धम् । एकाकारस्वरसभरतोऽत्यन्तगम्भीरधीरं
पूर्णं ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि ।। १३-१९२।।
[ हरिगीत ]
बन्ध छेद से मुक्त हुआ यह शुद्ध आतमा, निजरस से गंभीर धीर परिपूर्ण ज्ञानमय ।
उदित हुआ है अपनी महिमा में महिमामय,
अचल अनाकुल अज अखण्ड यह ज्ञानदिवाकर।।१९२।।
[ भगवान् श्री कुन्दकुन्द -
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खंडान्वय सहित अर्थ:- एतत् पूर्णं ज्ञानं ज्वलितम् ' [ एतत् ] जिस प्रकार कहा है कि [ पूर्णं ज्ञानं ] समस्त कर्ममल कलंकका विनाश होनेसे जीवद्रव्य जैसा था अनंत गुण बिराजमान वैसा [ ज्वलितम् ] प्रगट हुआ । कैसा प्रगट हुआ ? '' मोक्षम् कलयत् '' [ मोक्षम् ] जीवकी जो निःकर्मरूप अवस्था, उस [ कलयत् ] अवस्थारूप परिणमता हुआ । कैसा है मोक्ष ? '' अक्षय्यम्'' आगामी अनंत काल पर्यन्त अविनश्वर है, [ अतुलं ] उपमा रहित है। किस कारणसे ? " बन्धच्छेदात् '' [ बन्ध ] ज्ञानावरणादि आठ कर्मके [ छेदात् ] मूल सत्तासे नाश द्वारा । कैसा है शुद्ध ज्ञान ? — नित्योद्योतस्फुटितसहजावस्थम्'' [ नित्योद्योत ] शाश्वत प्रकाशसे [ स्फुटित] प्रगट हुआ है [सहजावस्थम् ] अनंत गुण बिराजमान शुद्ध जीवद्रव्य जिसको, ऐसा है। और कैसा है ? एकान्तशुद्धम्'' सर्वथा प्रकार शुद्ध है । और कैसा है ? " अत्यन्तगम्भीरधीरं '' [ अत्यन्तगम्भीर ] अनंत गुण बिराजमान ऐसा है, [ धीरं ] सर्व काल शाश्वत है । किस कारणसे ? एकाकारस्वरसभरत:'' [ एकाकार ] एकरूप हुए [ स्वरस ] अनन्त ज्ञान अनन्त दर्शन अनन्त सुख अनन्त वीर्यके [ भरत: ] अतिशयके कारण। और कैसा है ? स्वस्य अचले महिम्नि लीनं ' [ स्वस्य अचले महिम्नि ] अपने निष्कम्प प्रतापमें [ लीनं ] मग्नरूप है । भावार्थ इस प्रकार है कि सकल कर्मक्षयलक्षण मोक्ष में आत्म द्रव्य स्वाधीन है। अन्यत्र चतुर्गति में जीव पराधीन है। मोक्ष का स्वरूप
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कहा ।।१३ – १९२ ।।
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