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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १५६ समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [अनुष्टुप] इति वस्तुस्वभावं स्वं ज्ञानी जानाति तेन सः। रागादीन्नात्मनः कुर्यान्नातो भवति कारकः।।१४-१७६ ।। [दोहा ऐसे वस्तुस्वभाव को जाने विज्ञ सदीव। अपनापन ना राग में अतः अकारक जीव।।१७६ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "ज्ञानी इति वस्तुस्वभावं स्वं जानाति'' [ ज्ञानी] सम्यग्दृष्टि जीव [ इति] पर्वोक्त प्रकार [ वस्तस्वभावं ] द्रव्यका स्वरूप ऐसा जो [ स्वं] अपना शुद्ध चैतन्य, उसको | जानाति ] आस्वादरूप अनुभवता है, "तेन स: रागादीन आत्मनः न कर्यात'' [ तेन] तिस कारणसे [ स:] सम्यग्दृष्टि जीव [रागादीन] राग द्वेष मोहरूप अशुद्ध परिणाम [आत्मनः] जीवद्रव्यके स्वरूप है ऐसा [ न कर्यात ] नहीं अनभवता है. कर्मके उदयकी उपाधि है ऐसा अनभवता है। "अतः कारकः न भवति'' [अतः] इस कारणसे [ कारक:] रागादि अशुद्ध परिणामोंका कर्ता [न भवति] नहीं होता। भावार्थ इस प्रकार है कि सम्यग्दृष्टि जीवके रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना नहीं है, इसलिए सम्यग्दृष्टि जीव कर्ता नहीं है।। १४-१७६ ।। [अनुष्टुप] इति वस्तुस्वभावं स्वं नाज्ञानी वेत्ति तेन सः। रागादीनात्मनः कुर्यादतो भवति कारकः ।। १५-१७७।।* [दोहा] ऐसे वस्तु स्वभाव को ना जाने अल्पज्ञ। धरे एकता राग में नहीं अकारक अज्ञ।।१७७।। खंडान्वय सहित अर्थ:- ''अज्ञानी इति वस्तुस्वभावं स्वं न वेत्ति'' [अज्ञानी] मिथ्यादृष्टि जीव [इति] पूर्वोक्त प्रकार [ वस्तुस्वभावं] द्रव्यका स्वरूप ऐसा जो [स्वं] अपना शुद्ध चैतन्य, उसको[ न वेत्ति ] आस्वादरूप नहीं अनुभवता है, "तेन सः रागादीन् आत्मनः कुर्यात्''[तेन] तिस कारणसे [ सः] मिथ्यादृष्टि जीव [ रागादीन्] राग-द्वेष- मोहरूप अशुद्ध परिणाम [आत्मनः] जीवद्रव्यके स्वरूप है ऐसा [कुर्यात्] अनभवता है, कर्मके उदयकी उपाधि है ऐसा नहीं अनभवता है, "अतः कारक: भवति'' [अतः] इस कारणसे [कारक:] रागादि अशुद्ध परिणामोंका कर्ता [भवति] होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि मिथ्यादृष्टि जीवके रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना है, इसलिए मिथ्यादृष्टि जीव कर्ता है।। १५-१७७।। * पंडित श्री राजमल्लजीकी टीकामें यह श्लोक एवं उसका अर्थ छूट गया है। श्लोक नं १७६के आधारसे इस श्लोकका 'खंडान्वय सहित अर्थ' बनाकर यहाँ पादटिप्पण में दिया है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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