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कहान जैन शास्त्रमाला]
बंध-अधिकार
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जो पुद्गलद्रव्य का पिण्ड वह कारण है ? ऐसा पूछने पर आचार्य उत्तर कहते है।। १२ –१७४।।
[उपजाति] न जातु रागादिनिमित्तभावमात्मात्मनो याति यथार्ककान्तः। तस्मिन्निमित्तं परसङ्ग एव वस्तुस्वभावोऽयमुदेति तावत्।। १३-१७५।।
[सोरठा] अग्निरूप न होय सूर्यकान्तमणि सूर्य बिन । रागरूप नहोय यह आतम परसंग बिन।।१७५।।
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खंडान्वय सहित अर्थ:- "तावत् अयम् वस्तुस्वभावः उदेति'' [ तावत्] किया था प्रश्न, उसका उत्तर इस प्रकार - [अयम वस्तुस्वभाव:] यह वस्तका स्वरूप [ उदेति ] सर्व काल प्रगट है। कैसा है वस्तका स्वभाव ? "जात आत्मा आत्मनः रागादिनिमित्तभावम किसी कालमें [आत्मा] जीवद्रव्य [ आत्मनः रागादिनिमित्तभावम् ] आपसंबंधी हैं जो राग द्वेष मोहरूप अशुद्ध परिणाम उनके कारणपनारूप [ न याति] नहीं परिणमता है। भावार्थ इस प्रकार है कि द्रव्यके परिणामका कारण दो प्रकारका है - एक उपादान कारण है, एक निमित्त कारण है। उपादान कारण द्रव्यके अन्तर्गर्भित है अपने परिणाम पर्यायरूप परिणमनशक्ति, वह तो जिस द्रव्यकी उसी द्रव्यमें होती है ऐसा निश्चय है। निमित्तकारण- जिस द्रव्यका संयोग प्राप्त होनेसे अन्य द्रव्य अपनी पर्यायरूप परिणमता है। वह तो जिस द्रव्यकी उस द्रव्यमें होती है, अन्य द्रव्यगोचर नहीं होती ऐसा निश्चय है। जैसे मिट्टी घट पर्यायरूप परिणमती है। उसका उपादान कारण है मिट्टी में घटरूप परिणमनशक्ति। निमित्तकारण है बाह्यरूप कुम्हार, चक्र, दण्ड इत्यादि। वैसे ही जीवद्रव्य अशुद्ध परिणाम मोह राग द्वेषरूप परिणमता है। उसका उपादानकारण है जीवद्रव्यमें अन्तर्गर्भित विभावरूप अशुद्ध परिणमनशक्ति। "तस्मिन् निमित्तं'' निमित्तकारण है 'परसङ्गः एव'' दर्शनमोह चारित्रमोह कर्मरूप बँधा जो जीवके प्रदेशोंमें एकक्षेत्रावगाहरूप पुद्गल द्रव्यका पिण्ड, उसका उदय। यद्यपि मोहकर्मरूप पुद्गलपिण्डका उदय अपने द्रव्यके साथ व्याप्य-व्यापकरूप है, जीवद्रव्यके साथ व्याप्य-व्यापकरूप नहीं है तथापि मोह कर्मका उदय होनेपर जीवद्रव्य अपने विभाव परिणामरूप परिणमता है ऐसा ही वस्तुका स्वभाव है। सहारा किसका ? यहाँ दृष्टांत है -''यथा अर्ककान्तः' जैसे स्फटिकमणि लाल, पीली, काली इत्यादि अनेक छविरूप परिणमती है। उसका उपादानकारण है स्फटिकमणिके अन्तर्गर्भित नाना वर्णरूप परिणमनशक्ति। निमित्तकारण है बाह्य नाना वर्णरूप पूरीका [ आश्रयरूप वस्तुका ] संयोग।। १३–१७५ ।।
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