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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १५२ समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [अनुष्टुप] मिथ्यादृष्टे: स एवास्य बन्धहेतुर्विपर्ययात्। य एवाध्यवसायोऽयमज्ञानात्माऽस्य दृश्यते।। ८-१७०।। [दोहा] विविध कर्म बंधन करें जो मिथ्याध्यवसाय। मिथ्यामति निशदिन करें वे मिथ्याध्यवसाय।।१७०।। खंडान्वय सहित अर्थ:- ''अस्य मिथ्यादृष्टे: सः एव बन्धहेतुः भवति'' [अस्य मिथ्यादृष्टे:] इस मिथ्यादृष्टि जीवके [ स: एव] मिथ्यात्वरूप है जो ऐसा परिणाम कि इस जीवने इस जीवको मारा, इस जीवने इस जीवको जिलाया 'ऐसा भाव [बन्धहेत: भवति ] ज्ञानावरणादि कर्मबंधका कारण होता है। किस कारणसे ? ''विपर्ययात्'' कारण कि ऐसा परिणाम मिथ्यात्वरूप है। "यः एव अयम् अध्यवसायः' इसको मारूँ, 'इसको जिलाऊँ' 'ऐसा जो मिथ्यात्वरूप परिणाम जिसके होता है ''अस्य अज्ञानात्मा दृश्यते'' [अस्य] ऐसे जीवका [अज्ञानात्मा] मिथ्यात्वमय स्वरूप [दृश्यते] देखने में आता है।। ८-१७०।। [अनुष्टुप] अनेनाध्यवसायेन निष्फलेन विमोहितः। तत्किञ्चनापि नैवास्ति नात्मात्मानं करोति यत्।।९-१७१।। [दोहा] निष्फल अध्यवसान में मोहित हो यह जीव। सर्वरूप निज को करे जाने सब निजरूप।।१७१।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "आत्मा आत्मानं यत् न करोति तत् किञ्चन अपि न एव अस्ति'' [आत्मा] मिथ्यादृष्टि जीव [ आत्मानं] अपनेको [यत् न करोति] जिसरूप नहीं आस्वादता [ तत् किञ्चन ] ऐसी पर्याय ऐसा विकल्प [न एव अस्ति] त्रैलोक्यमें है ही नहीं। भावार्थ इस प्रकार है कि मिथ्यादृष्टि जीव जैसी पर्याय धारण करता है, जैसे भावरूप परिणमता है, उस सबको आपस्वरूप जान अनुभवता है। इसलिए कर्मके स्वरूपको जीवके स्वरूपसे भिन्न कर नहीं जानता है, एकरूप अनुभव करता है। "अनेन अध्यवसायेन'' इसको मारूँ, इसको जिलाऊँ, इसे मैने मारा, इसे मैने जिलाया, इसे मैने सुखी किया, इसे मैने दुःखी किया ऐसे परिणामसे "विमोहितः'' गहल हुआ है। कैसा है परिणाम ? ''निःफलेन'' झूठा है। भावार्थ इस प्रकार है कि यद्यपि मारनेकी कहता है, जिलाने की कहता है तथापि जीवोंका मरना जीना अपने कर्मके उदयके हाथ है। इसके परिणामोंके आधीन नहीं है। यह अपने अज्ञानपनाको लिए हुए अनेक झूठे विकल्प करता है।। ९-१७१।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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